कानपुर । पैगम्बर ए इस्लाम के दामाद, इस्लाम के चौथे खलीफा, शेरे खुदा मुश्किल कुशा हज़रत मौला अली (रजि०अन०) की शहादत पर खानकाहे हुसैनी हज़रत ख्वाजा सैय्यद दाता हसन सालार शाह (रह०अलै०) की दरगाह पर मनकबत व नज़र पेशकर मौला अली को खिराज ए अकीदत पेश की गयी।
हज़रत ख्वाजा सैय्यद दाता हसन सालार शाह (रह० अलै०) की मज़ार पर गुलपोशी इत्र केवड़ा संदल पेश किया गया उसके बाद शोरा ए कराम ने नात मनकबत पेश की जिसमें “अली के नाम से तूफान भी खौफ खाते है, जिन्हें यकीन नही वो डूब जाते है, फरिश्ते कब्र मे कुछ और पूछते ही नही जुबा मे नाम ए अली सुनकर लौट जाते है।” शेरे खुदा मौला अली की शहादत पर खिराज ए अकीदत पेश करते हुए साहिबे सज्जादा इखलाक अहमद डेविड चिश्ती ने कहा खामोश है तो दीन की पहचान अली है अगर बोले तो लगता है कुरान अली है। इराक के कूफा शहर की मस्जिद में 19 रमज़ान को इब्ने मुलज़िम ने मौला अली पर फ़ज़र की नमाज़ में तलवार से हमला किया था। हमले के दो दिन बाद 21 रमज़ान सन 40 हिजरी (29 जनवरी 661) को आप की शहादत हो गयी मौला अली ने विलादत काबे मे और शहादत मस्जिद में पाई अली जैसा न कोई बहादुर है न ज़ुल्फिकार जैसी कोई तलवार,दुश्मन को मालूम था की अली को जंग के मैदान मे हराना नामुमकिन है नमाज़ की हालत में ही उन पर हमला किया जा सकता है । आपकी उम्र 63 साल थी आपकी नमाज़े जनाज़ा आपके बड़े शहज़ादे हज़रत इमाम हसन ने पढ़ाई,मौला अली कहते है कि कभी कामयाबी को दिमाग मे और नाकामी को दिल मे जगह न देना क्योंकि कामयाबी दिमाग मे तकब्बुर और नाकामी दिल मे मायूसी पैदा कर देती है,पैगम्बर ए इस्लाम ने दुआ फरमाई या अल्लाह जो अली से मोहब्बत करे तू उससे मोहब्बत कर और जो अली से अदावत रखे तू उससे अदावत रख। खिताब के बाद नज़र व दुआ हुई दुआ में इखलाक अहमद डेविड चिश्ती ने अल्लाह की बारगाह मे रसूले खुदा,अहले बैत के सदके जानलेवा कोरोना वायरस को हमारे मुल्क से खात्मा करने, मुल्क की आवाम पर रहम करने,मुल्क सूबे शहर मे खुशहाली देने,रमज़ान की इबादत व तौबा को कुबूल करने की दुआ की ।
नज़र व दुआ मे इखलाक अहमद डेविड चिश्ती,मोहम्मद मुबश्शीर निज़ामी,परवेज़ आलम वारसी,मोहम्मद हफीज़, परवेज़ सिद्दीकी,हाजी गौस रब्बानी,शमशुद्दीन खान,मोहम्मद जावेद,नईमुद्दीन फारुकी,अफज़ाल अहमद आदि लोग मौजूद थे।
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