सिद्दार्थ ओमर
कानपुर । पाकिस्तानी लेखक शाह खान द्वारा लिखी गई नात वह धूपों में तपती जमीनों पर सजदे जमीन पूछती है नमाजी कहां है इस कोविड-19 महामारी में रमजान ईद के मौके पर सटीक बैठती है । मस्जिदों एव ईद गाह की जमीन पर सजदे करने को मुस्लिम बेकराल तो हैं लेकिन कोविड 19 की गाइड लाइन को मानना भी इबादत मान रहा है मुस्लिम समाज में रमजान का महीना इबादत का महीना होता है ऐसा मत है कि इस महीने में एक नेकी के बदले 70 नेकिया मिलती हैं परंतु कोविड-19 महामारी के चलते सभी धार्मिक स्थल बंद है लेकिन रमजान माह होने के कारण मस्जिदों का बंद होने से मुस्लिम समाज मायूस है who कोविड 19 की गाइड लाइन में इस महामारी का बचाव सोशल डिस्टेंस है । रमज़ान का आखिरी जुमा अलविदा होता है । जिस को छोटी ईद के नाम से भी जाना जाता है जिस को मुस्लिम समाज नही बना पाया । अब ईद की नमाज़ भी मस्जिदों में नही होगी । इस को भी जुमे की तरह घर पर ही पढ़नी होगी । बड़ी ईद गाह बजरिया में हज़ारों की तादाद में मुस्लिम भाई नमाज पढ़ने अल्लाह हू अकबर अल्लाह हू अकबर पढ़ते हुए पहुँचते थे । ईद गाह में साल में सिर्फ दो नमाज़े ईद एव बकरीद की होती है । जिस का मुस्लिम समाज बड़ी बेसब्री से इंतेज़ार करता है । ईद गाह में इन नमाजों की तैयारियां 15 दिन पहले से शुरू की जाती हैं । हालाकि ईद गाह कमेटी ने उम्मीद पर अपनी तैयारियां पूरी की हुई थीं । लेकिन सोशल डिस्टेंस मेंटेन रखने के कारण सभी धार्मिक स्थल बंद है एव सभी धार्मिक कार्यक्रम आयोजन पर रोक है ।
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