अकबर/अनीस
कानपुर प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी नगर निगम द्वारा नाला सफाई और सिल्ट उठाने की औपचारिकता पूरी की गई । बरसात का मौसम आ गया औपचारिकता पूरी ,काम खत्म,पैसा हज़म । अब सवाल उठे उठता है कि नाला सफाई और सिल्ट का मामला मई,जून में ही क्यों होता है । जब कि सब को पता है कि अगर पानी बरसा तो सड़क पर इकट्ठा सिल्ट वापस नाले में ही जायगी । सारी कार्यवाही मात्र कागज़ों पर । यही कारण है कि इस बार मौसम की पहली और थोड़ी बारिश में ही ज्यादतर मौहल्ले टापू बन गए । हर वर्ष मई माह के आखिर मर और जून माह में सिल्ट उठाने का काम शुरू होता है । सिल्ट निकाल कर के सड़क पर रखी जाती है (वो भी सारे महोल्लो में नही) और पानी बरसने पर वापस नाले में। नगर निगम का ये कारनामा अनवरत रूप से जारी है । कोई रोकने टोकने वाला है ही नही। सैय्यां भय कोतवाल तो डर काहे का । साहब लोगों का वरद हस्त है तो नगर निगम के सफाई कर्मी बादशाह। आलम यह है हमारे नगर निगम का की यहां के स्थायी सफाई कर्मचारियों ने ठेके पर अपना अपना क्षेत्र सफाई करने के लिए दे रख्खा है और स्वयं कोई कार्य नही करते 3000₹के ठेके पर अपना अपना क्षेत्र सफाई के लिए दिया हुआ है । सरकारी दामाद होने का इस से अच्छा उदाहरण कहाँ मिलेगा ?इतना बड़ा भ्र्ष्टाचार तो शायद ही कहीं होगा?
यही कारण है कि नगर निगम स्तर पर सामान्य नागरिकों को राहत के नाम पर कोई कार्यवाही नही है । मात्र कर वसूली देय है। नागरिकों को सुविधा देने से कोई मतलब नही । इस बारे में जब वरिष्ठ अधिवक्ता एवं विधि मामलों के विशेषज्ञ डॉ एस. के.वर्मा से वार्ता की गई तो उन्होंने बताया कि सब भ्र्ष्टाचार की देन है । साल भर तो कोई कार्य नही करते फिर बरसात आते ही सिल्ट कहाँ से याद आ जाती है ? सारा मामला पूर्व नियोजित होता है । ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार घोटालों की फाइलें शार्ट सर्किट से आग लगने के कारण जल जाती हैं एवं रिकार्ड नष्ट हो जाता है, ठीक उसी प्रकार सिल्ट का खेल है ।जनता की परवाह है किस को ? अपने से फुरसत मिले तब न जनता की सोचें । अपना भला तो सब भला । जनता है कौन ? मात्र वोट देने की मशीन । वोट दो सरकार बनाओ काम खत्म ,पैसा हजम
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