कानपुर । यदि हम सहकारिता अर्थात कोआपरेटिव के इतिहास में जाएं तो 01-03-1966 से पहले राज्य की कोऑपरेटिव सोसाइटी बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 के अंतर्गत कवर नहीं थी और राज्य का रजिस्टार ही केवल एक नियामक था और वही राज्य की कोऑपरेटिव सोसाइटी एवम बैंकिंग व्यवस्था दोनों का सुपरविजन अर्थात पर्यवेक्षण करता था।
बी.आर. एक्ट 1949 के सेक्शन 22 में भारत के कोऑपरेटिव बैंक में डुअल कंट्रोल अर्थात दोहरी व्यवस्था लागू हुई और सन 1994 में सहकारी बैंक में घोटाले का तूफान सा खड़ा हो गया और यही डुअल कंट्रोल अर्थात दोहरी व्यवस्था को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने उखाड़ फेंका।
1963 में ही मद्रास सरकार के साथ बहस में यह तय हुआ कि किसी भी कोऑपरेटिव बैंक को लिक्विडेट अर्थात नष्ट किया जा सकता है और उसके प्रबंधतंत्र को सुपरसीड किया जा सकता है।
यदि हम भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट दिनांक 07-12-1999 की धारा 8.3 को पढ़ें इसमें वर्णित है कि उस समय 50-60 कोऑपरेटिव बैंक फेल हो गए जमाकर्ता, खाताधारकों कि ऐसी तैसी हो गई। निर्दोष ग्राहकों की जमापूंजी लेकर ये घोटालेबाज फरार हो गए लिहाजा काफी जद्दोजहद के बाद बैंकिंग लाॅ बिल(applicable to cooperative societies) भारत की संसद में पास हुआ और सितंबर 1965 में तत्कालीन राष्ट्रपति महोदय ने इस पर हस्ताक्षर किए और ये दोहरी व्यवस्था 01-03-1966 से सहकारी बैंकों में लागू हुई एवं कोऑपरेटिव बैंकों में लूट-खसोट का धंधा पूरे चरम पर चलने लगा। इन सहकारी बैंकों में घोटालेबाज लूट बड़े ही सुनियोजित ढंग से करते थे और घोटाला होने के उपरांत यह दोनों ही नियामक आर.बी.आई एवं रजिस्ट्रार एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर ग्राहकों के पैसे को हजम हो जाने देते थे अर्थात दोहरी व्यवस्था में ग्राहक मर जाता था और 2020 तक यह धंधा चला आ रहा था।
कानपुर तो वैसे भी क्रांतिकारियों का शुरू से ही गढ़ रहा है जिन्होंने फांसी पर लटकना तो स्वीकार तो कर लिया लेकिन अंग्रेजों के दांत ही नहीं खट्टे किए बल्कि गंगा मैया का जल तक रक्त से लाल कर दिया। इस प्रकार की लूट को देखकर कानपुर के कुछ आर.टी.आई एक्टिविस्ट ने सहकारी बैंकों के घोटाले में धीरे-धीरे आर.टी.आई के माध्यम से घुसना शुरू किया और केवल कानपुर में छह बैंकों के घोटालों को भारत सरकार एवं राज्य सरकार के सम्मुख रख दिया। भारत सरकार इन घोटालों को देखकर भौचक्की रह गई।
मोदी की भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस की नीति ने पूरे कॉपरेटिव बैंक से दोहरी व्यवस्था को अध्यादेश के जरिए खत्म कर दिया। आज कानपुर से मनोनीत महामहिम राष्ट्रपति महोदय श्री रामनाथ कोविंद जी ने इस बिल पर हस्ताक्षर कर एक स्वर्णिम इतिहास रच दिया एवं इस व्यवस्था को सदा के लिए खत्म कर दिया। यह कानपुर वासियों के लिए सौभाग्य की बात है कि इस बिल से कोऑपरेटिव बैंक में होने वाले भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सकेगा एवं आर.बी.आई को पूरी कमान सौंप दी जाएगी ।
इस अध्यादेश को लाने में भारत की वित्त मंत्री सुश्री निर्मला सीतारमण एवं आर.बी.आई के गवर्नर श्री शशिकांत दास ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई एवं कोरोना की लड़ाई लड़ते हुए सरकार के साथ मिलकर इस अध्यादेश को लागू कर दिया । आर.बी.आई का मुख्यालय स्वयं इस व्यवस्था को खत्म करना चाहता था, आर.बी.आई के गवर्नर को यह पता चल चुका था कि रजिस्ट्रार कार्यालय एवं संबंधित राज्य के अर्बन बैंक डिपार्टमेंट की भूमिका संदिग्ध है कानपुर के आर.टी.आई कार्यकर्ता की आर.टी.आई से सब गड़बड़झाला एवं गोलमाल उनकी नजर में था और वह निश्चित कर चुके थे कि दोहरी व्यवस्था सहकारी से बैंक खत्म होनी चाहिए। जनता के धन का बंदरबाट बंद होना ही चाहिए । आर.बी.आई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ लंबे विचार-विमर्श के बाद वो कर दिखाया जो 1966 से नहीं हुआ था वो 2020 में मोदी 2.0 सरकार में हुआ।
तमाम बुद्धिजीवीयों, सहकारी बैंकों और फेडरेशन के विचार विमर्श के उपरांत एक ही मत से यही तर्क दिया गया कि सहकारी बैंक से दोहरी व्यवस्था खत्म होनी ही चाहिए।
“आसमान में कई आसमान हो सकते हैं जबकि मनुष्य एक ही आसमान देख सकता है, मनुष्य जितने भी तारे आसमान में गिन सकता है उससे भी ज्यादा तारे होते हैं, मनुष्य एक ही समुद्र में तैर सकता है लेकिन समुद्र में कई समुद्र होते हैं, करोड़ों लोग उस आसमान, तारों एवं समुद्र को ज्वाइन एक साथ कर सकते हैं लेकिन जब बैंकिंग में अर्बन कोऑपरेटिव बैंक के सुपरविजन की बात आती है तो उसको शेयर नहीं किया जा सकता, उसको दो अथॉरिटी अर्थात दो नियामक सुपरवाइज करें यह नहीं हो सकता इसी सिद्धांत को लेकर मोदी सरकार कोऑपरेटिव बैंक के घोटालों को संज्ञान में लेकर आगे बढ़ी और सहकारी बैंक से दोहरी व्यवस्था को सदा के लिए खत्म कर दिया ।
ऑल इंडिया बैंक डिपॉजिटर्स एसोसिएशन को यह गलतफहमी थी कि अर्बन कोऑपरेटिव बैंक में जमा धन सुरक्षित है एवम् यदि कोई कॉपरेटिव बैंक फेल होता है तो भारतीय रिजर्व बैंक नियामक के रूप में आगे आएगा जब कि ऐसा नहीं था । इसमें कोई शक नहीं था कि दोहरी व्यवस्था डुअल कंट्रोल घातक थी और इसे तत्काल रिप्लेस करने कि जरूरत थी ।
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