कानपुर । ऐसा कहा जाता है कि साहित्य समाज का आईना है, जिस तरह से हम आइने में अपनी सूरत देखते हैं वैसे ही समाज की सूरत साहित्य में दिखाई पड़ती है । लाकडाउन की अवधि में समाज के बहुत सारे ज्वलंत मुद्दों पर सोशल मीडिया के माध्यम से लाइव होकर देश के हर कोने से विद्वतजनों ने अपनी बात रखी। कुछ ऐसा ही प्रयास हलीम मुस्लिम पी.जी. काॅलेज के सहायक आचार्य, डाॅ. एम. फिरोज खान ने वाङ्मय पत्रिका एवं विकास प्रकाशन के संयुक्त तत्वाधान में ‘किन्नर विमर्श’ पर किया । एक ऐसा समुदाय जिसके बारे में लोग बात करने से कतराते थे उस पर व्याख्यानमाला की तीन श्रृंखलाएँ आयोजित की गयीं । तीसरी श्रृंखला सात दिनों तक अनवरत चलती रहेगी जिसमें केवल किन्नर समुदाय के ही लोग अपनी बात रखेंगे। इस व्याख्यानमाला के दूसरे दिन एम एक्स धनंजय चैहान, सदस्य ट्रांसजेण्डर कल्याण बोर्ड, चण्डीगढ़, अध्यक्ष सक्षम ट्रस्ट ने ‘ट्रांसजेण्डर: शिक्षा का अधिकार’ पर अपनी बात रखी।
लेक्चर का प्रारंभ उन्होंने समाज की उस मानसिकता को दर्शाते हुए किया जो केवल स्त्राी व पुरुष की बात करता है जहाँ तृतीय प्रकृति के लिए कोई जगह नहीं है। धनंजय मैम ने कहा कि हमें जेण्डर पर आधारित सोच को बदलना पड़ेगा क्योंकि जेण्डर हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान है जबकि हमें अपनी मौलिक, लैंगिक पहचान जो सेक्स पर आधारित है को स्वीकार करना चाहिए। एक आदमी की जैविक पहचान उसके अंदर की भावनाओं पर निर्भर करती है। यदि किसी स्त्राी को पुरुष का शरीर प्राप्त हो गया किंतु आत्मा औरत की है तो वह हमेशा औरतों जैसा ही व्यवहार करने का प्रयास करेगी परंतु इस चीज को समाज स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि समाज ने जेण्डर रूपी चश्मा धारण किया है जिसे बदलने की जरूरत है।
धनंजय जी ने बीते हुए काल में ट्रांसजेण्डर की मौजूदगी का एहसास इतिहास के पन्नों को पलट कर कराया। वृहन्नला, मोहिनी, अरावन, अर्द्धनारीश्वर बहुचरा माता, शिखण्डी, मलिक काफूर व मुगल सल्तनत के समय के तमाम उदाहरण देकर उनकी सम्मानजनक स्थिति से अवगत कराया। ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा पारित 1871 के एक्ट को उन्होंने मुख्य कारण बताया जो इस समुदाय को हाशिए पर ले गया। परिवार व समाज की क्रूरता ने इन्हें मुख्य धारा से अलग कर दिया। मैडम ने बहुत ही तार्किक प्रश्न किया कि जब एक ही माँ-बाप से जन्म लिये हुए लड़का या लड़की परिवार में माँ-बाप के साथ रह सकता है तो एक ट्रांसजेण्डर क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि हम दूसरे ग्रह से नहीं आये हैं और न ही हमारे लिए कोई अलग धरती है। हम संघर्ष करते रहे थे सम्मान के साथ जीने के लिए और अपने अधिकारों को लेकर रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि लोग कहते हैं हम भीख माँगते हैं, कमाते नहीं हैं, मुझे बताया जाये कि रोजगार के कौन से दरवाजे हमारे लिए खोले गये हैं? उनका आह्नान था कि समाज हमें लाचार या मजबूर की निगाहों से न देखे बल्कि कंधे से कंधा मिलाकर हमारे साथ खड़ा हो तो हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर लेंगे।
मैडम ने 15 अप्रैल 2014 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय को ऐतिहासिक बताया परंतु यह भी कहा कि इसका क्रियान्वयन अभी तक नहीं हुआ है। ट्रांसजेण्डर पर्सन बिल 2019 को उन्होंने अच्छा कदम माना किंतु, सुधार की बहुत सारी गुंजाइश जैसे खुद से अपना सेक्स चुनने का अधिकार, बच्चे गोद लेने का अधिकार व ट्रांसजेण्डर को परेशान किये जाने पर दण्ड का प्रावधान का प्रबंध किये जाने की बात कही।
शिक्षा के संदर्भ में उन्होंने कहा कि हमारे समुदाय के लिए अलग से काॅलेज या विश्वविद्यालय खोले जाने की जरूरत नहीं है, हम साथ पढ़ेंगे तभी बदलाव आयेगा। उन्होंने शिक्षण संस्थाओं में अलग ट्रांसजेण्डर शौचालय बनाये जाने की माँग की। उनके अथक प्रयास से चण्डीगढ़ विश्वविद्यालय ने ऐसा किया भी। एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने अपने द्वारा किये गये प्रयासों पर प्रकाश डाला। उनकी व्यक्तिगत जिंदगी दुःखों से भरी पड़ी है किंतु प्रबल इच्छा से उन्होंने वह मुकाम हासिल किया है जो और लोग नहीं कर पाये। उन्होंने कहा कि जेण्डर जस्टिस की परिकल्पना तभी साकार होगी जब भारत का प्रधानमंत्राी कोई ट्रांसजेण्डर होगा ।
इस अवसर पर देश-विदेश के तमाम शोधकार्यकर्ता,आचार्य, सहायक आचार्य और गणमान्य लोग लाइव थे । इस अवसर पर भगवानदास मोरवाल,मीरा परीदा,डाॅ. रेनू,डाॅ.विजेन्द्र, डाॅ.रमाकान्त,प्रो. मेराज,अरुणा सभरवाल,डाॅ. शमीम,डाॅ. एक.के. पाण्डेय,डाॅ. शगुफ्ता,डाॅ. कामिल,डाॅ.आशिफ, डाॅ.विमलेश,डाॅ. लता,डाॅ.अफरोज,डाॅ.अंजना वर्मा, अकरम,मनीष,दिपांकर,कामिनी,इमरान,रासिद,साफिया, गिरिजा भारती,अनुराग,अनवर खान,केशव बाजपेयी,मिताली सिंह,सुनीता जैन,रोशनी आदि ने लाइव शो देखा ।
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