कानपुर । रचना एक संश्लिष्ट प्रक्रिया है एक रचनात्मक विवेक होता है जो अवचेतन से लेकर चेतन तक दौडता,विषय को जाँचता-परखता,संवेदनात्मक शब्दों में लेखक से अपने को लिखवाता चलता है । रचना अपनी ज़मीन की सच्चाई,कल्पना,बुद्धि, तर्क,संवेदना और आदर्श के पाँच मुख्य स्तंभों पर खड़ा होती है । लेखक जब लिखता है तो वह केवल उस विषय के बारे में ही नहीं लिखता जो उसकी आँखों के आगे हो्ता है बल्कि उसके लिखे में उसकी स्मृति से निकल कर न जाने कितने पिछले युग,उनसे जुड़े वाक्य,सूत्र,चरित्र,घटनाएँ या दृश्य, उनके सुख-दुख,संघर्ष-यातनाएँ,समाज-प्रकृति और उनके प्रति लेखक की प्रतिक्रिया सभी चले आते हैं । इसलिए लेखक के रचना संसार के अनुभव जगत में बहुत सी ज़मीनें, बहुत से आसमान और बहुत सी नदियों का पानी रहता है । उसकी कलम से जो इंद्रधनुष निकलते हैं,उनका फ़ैलाव भी इसी तरह समय के एक छोर से दूसरे छोर तक,ज़मीन के एक टुकड़े से लेकर दूसरे टुकड़े तक फैला होता है ।
भारतवंशियों का रचना संसार अपने पैरों के निशानों से भरे, पीछे छूट गए आँगन से लेकर नई ज़मीन पर दौड़ते पाँवों के बीच उगता,पनपता है । वे भारत छोड़ कर बाहर आते हैं, पर भीतर के भारत को वो दुगुनी ताकत से पकड़ लेते हैं और कोशिश करते हैं कि नई ज़मीन पर अपना देश बनाया जाए । इस तरह पूरी दुनिया में प्रवासियों ने न जाने कितने भारत बना डाले हैं । भारतवंशी व्यक्ति के भीतर देश छोडने का दुख और नई जगह पर अपने सपनों का घर बसाने की उमंग एक साथ चलती है,उसमें सपने टूटने की चोट समाती है तो सपनों को फिर खड़ा करने का साहस और ताकत भी साथ ही उसे उठा कर खड़ा कर देती है । उसकी रचनाओं में भी हमें ये विरोधी दिखने वाले भाव दिखाई देते हैं । वह एक साथ हँसता और रोता दिखाई देता है ।
भारत में हिन्दी का लेखक प्राय: वो है जो विश्व विद्यालय स्तर तक हिन्दी पढ़ कर निकला है या हिन्दी का अध्यापक/ प्राध्यापक है या हिन्दी अनुवाद,पत्रकारिता या प्रशासकीय हिन्दी सेवाओं से जुड़ा हुआ है । ऐसे लोग कम हैं जो इंजीनियर या डॉक्टर हैं और लेखन का कार्य भी गंभीरता पूर्वक करते हैं जबकि विदेशों में ऐसा नहीं है । यहाँ बहुत से इंजीनियर, डॉक्टर,बैरिस्टर या व्यापारी हिन्दी लेखन का काम कर रहे हैं । इन लोगों ने भारत में आठवीं या दसवीं कक्षा तक हिन्दी की पढ़ाई की है पर हिन्दी साहित्य के प्रति अपने रुझान के चलते वे अपने व्यवसाय से समय निकाल कर हिन्दी कविता, हिन्दी नाटकों से जुड़े और इसी रुझान के कारण रचना करते रहे हैं । ये अपने बच्चों को हिंदी सिखाने के लिए सामुदायिक स्कूल बनाते और चलाते हैं,नई पीढ़ी को भाषा और संस्कृति से जोड़ने के संघर्ष,हिंदी के प्रचार-प्रसार के कामों के लिए अपनी नौकरियों और घर के कामों के बीच से समय निकालते हैं,ऐसे में अच्छी पुस्तकों की कम जानकारी या उपलब्ध न होने, साहित्यिक माहौल न होने से अपने लिखे का सुधार न कर पाने से उनके लेखन पर असर पड़ता है पर उनका लिखा उनका खरा अनुभव होता है,इसमें संदेह नहीं ।
भारतवंशी रचना संसार के अनुभवों के आधार को जानकर ही हम उनके साहित्य के मर्म को समझ सकते हैं । जब तक हम उनके डर,उनकी आशंकाएँ,संघर्ष,नौकरी के दबाब, संबंधों के बीच अकेले हो जाने के दर्द,परायी ज़मीन को अपनाने की दुविधा, भारत में परिवार द्वारा डॉलरों की माँग, अपने परिवार के बढ़ते खर्चे आदि के बीच खुशी,उत्साह और नए जीवन को बनाने के संकल्प को नहीं समझेंगे तब तक हम उनके साहित्य के साथ न्याय नहीं कर सकते ।
इस फेसबुक लाइव में अनेक शोधार्थी, विद्यार्थी शामिल हुए जैसे प्रो.विशाला शर्मा,डॉ.विमलेश,डॉ. शगुफ्ता,डॉ. तनवीर अख्तर,डॉ. सारिका,डॉ. कामिल,डॉ. आसिफ,डॉ. ए के पांडेय,सैयद महमूद,डॉ. शमा,डॉ. अफ़रोज़,डॉ. लता,डॉ. इकरार,अनुराग,मनीष,रिंकी,पंकज बाजपेयी,इमरान,राशिद, रोशनी,अनवर खान,ईश्वर दयाल एवं देश विदेश से विद्वान इस कार्यक्रम में शामिल हुए ।
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