आज़म/शाह
पहले मोहर्रम को इस्लाम के दूसरे खलीफा की शहादत हुई
अदलों इंसाफ के पैकर थे हजरत उमर फारूके आज़म
कानपुर : अमीरुल मोमिनीन हजरत सैयदना फारूक आजम रजि० के बारे में पैग़ंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्ला. इरशाद फरमाते हैं कि अगर मेरे बाद कोई नबी होता तो वह उमर होते, आप इस्लाम के दूसरे खलीफा भी थे, पैग़ंबरे इस्लाम इरशाद फरमाते हैं कि मैं बिला शुबह निगाहें नबूवत से देख रहा हूं कि जिन के शैतान और इन्सान के शैतान भी मेरे उमर के खौफ (डर) से भागते हैं हजरत आयशा से रिवायत है की पैग़ंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्ल इरशाद फरमाते हैं की आसमानों के सितारों के बराबर हमारे उमर की नेकियां है उक्त विचार ऑल इंडिया गरीब नवाज कैंसिल के तत्वाधान में आयोजित यौमें उमर फारुक ए आजम के जलसे को संबोधित करते हुए कौंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हजरत मौलाना मोहम्मद हाशिम अशरफी ने मदरसा रज्जाक किया मदीनतुल उलूम बांसमंडी में व्यक्त किये।
श्री अशरफी ने कहा कि इस्लाम को इतना फायदा किसी के ईमान लाने से नहीं पहुंचता जितना कि उमर फारुक आजम के ईमान लाने से पहुंचा, अदल इंसफ़ पैकर है हजरत उमर फारुके आजम, हजरत उमर फारुके आजम रजि० तआला अन्हु रोतो को मदीने की गलियों में गश्त लगाकर लोगों की खबर गिरी किया करते थे, एक रोज आपका गुजर एक रास्ते से हुआ तो एक औरत रो-रोकर कह रही थी कि काश हमारा शौहर भी जंग में ना गया होता तो मैं उसके साथ आराम कर रही होती, हजरत उमर फारूके आजम उस औरत के यह जुमले सुनकर फौरन घर वापस आये अपनी अहिल्या (पत्नी) का पहले विसाल हो चुका था तो अपने अपनी बेटी हजरते हफ्सा से पूछा की औरत कितने दिनों तक अपने शौहर के बगैर रह सकती है? इस सवाल को सुनकर हजरते हफ्सा ने सिर् शर्म से झुका लिया और कोई जवाब नहीं दिया, अपने फरमाया कि अल्लाह तआला हक बात में शर्म नहीं करता तो हज़रते हफ्सा ने हाथ के इशारे से बताया की तीन महीना ज्यादा से ज्यादा चार महीना तो हज़रत उमर फारुके आजम ने हुक्त जारी फरमा दिया कि जंग में किसी सिपाही को चार महीने से ज्यादा रोका ना जाये।
श्री अशरफी ने कहा हज़रत उमर फरुके आज़म रज़ि० को दुनिया मे ही पैगम्बरे इस्लाम ने जन्नती हिने की बशारत दे दी थी, उसके बाद भी हज़रत फरुके आज़म रज़ि० तआला अन्हु अल्लहा के डर से इतना रोया करते थे की आप की दोनों आंखों के नीचे आंसूओ के निशान पड़ गये थे और आप जमीन से एक तिनका उठाकर यह कहा करते थे कि काश उमर कोई इंसान न होता एक तिनका होता जो कल बरोज़ कयामत में हिसाब देने से बच जाता। आप ने दस साल छ: माह चार दिन खिलाफत की और एक मोहर्रम 24 हिजरी को 63 साल की उम्र में इस दुनिया से रुखसत हो गए।
इससे पूर्व जलसे की शुरुआत तिलावते कुरान पाक से हाफिज शौकत अली ने की और बारगाहे रिसालत में हाफिज मो.नावेद, मोहम्मद शाहवेज, मो.तलहा, मोहम्म रेहान, हाफिज गुलाम जिलानी ने नात शरीफ का नजराना पेश किया। जलसे की सरपरस्ती हाफिज अब्दुल रहीम बहराइची व संचालन माजूर कानपुरी ने किया। जलसे के संयोजक आल इंडिया गरीब नवाज कौंसिल के कौमी प्रवक्ता मोहम्मद शाह आज़म बरकाती रहे।
इस अवसर पर प्रमुख रूप से जलसे के संयोजक मो. शाह आज़म बरकाती, अब्दुल रहीम बहराइची ,मौलाना फिरोज़ आलम,हाफिज मो. आशिफ,मो. फहीम,हाफिज मो. दानिश,मो. मेराज,हाफिज मो. आकिब,मो. अनस,हाफिज मो. तनवीर,मो. असद,मो. अबरार,मो. परवेज़, मो. ताहिर,अब्दुल वाहिद,जाबिर अली,हफीज मो. नादिर,मो. हसनैन आदि लोग उपस्थित थे।
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