वाङ्गमय पत्रिका अलीगढ़ और विकास प्रकाशन कानपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में डॉ. फ़ीरोज़ ख़ान के कुशल नेतृत्त्व में आयोजित सात दिवसीय व्याख्यानमाला के अंतर्गत आज अभिना अहेर जो एक ट्रांसजेंडर एवं ट्रांसजेंडर सशक्तिकरण के लिए दिन रात प्रयासरत है । वाङ्गमय पत्रिका के फेसबुक पेज पर लाइव थी, 13 दिसम्बर 1977 को जन्मी अभिना अहेर ने अपने संघर्षमय जीवन का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया । वह हमसफ़र ट्रस्ट, फैमिली हेल्थ कम्युनिकेशन प्रोग्राम और इण्डिया HIV/AIDS संस्थाओं के साथ काम कर चुकी है वह एक कलाकार और डांसिंग क्वीन्स की संस्थापक है । वह वर्तमान समय मे अलायंस इण्डिया के साथ एसोसिएट डायरेक्टर : जेण्डर सेकसुअलिटी और राइट्स के रूप में काम कर चुकी है ।
आज के व्याख्यान में अपने जीवन पर प्रकाश डालते हए उन्होंने बताया कि तीन वर्ष की उम्र में उनके पापा का निधन हो गया, उनकी मां जो एक कथक नर्तकी थी बहुत ही मुश्किल से उनको पाला । उन्होंने बताया कि शरीर तो उन्हें पुरुष का प्राप्त हुआ,किन्तु आत्मा औरत की वह प्रायः आत्मा की आवाज़ सुनकर औरतों की तरह चलाना,सजना और व्यवहार करने लगी थी । कभी-कभार तो अपनी मां की साड़ी पहनकर मां के जैसा सजना चाहती थी किंतु उस समय उन्हें यह एहसास नही था कि जेण्डर पर निर्मित समाज मे रहने के लिए उन्हें कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी । अपने जीवन के बारे में उन्होंने बताते हुए कहा कि ऐसी कोई संस्था नहीं जहां उनके साथ हिंसा न हुई हो, जहां उन्हें ना सताया गया हो । स्कूल में तो कुछ लड़कों ने तो उस समय हद पार कर दी जब लड़कियों जैसा व्यवहार करने पर उनका दैहिक शोषण किया गया ।
जेण्डर आधारित समाज की मानसिकता की बर्बरता का ज़िक्र करते हुए अभिना अहेर ने कहा कि समाज के हर व्यक्ति के मन मे ट्रांसजेंडर को लेकर कोई ना कोई नकारात्मक विचार है। ऐसा इसलिए है कि हमारा समाज बाइनरी जेण्डर में
आधारित समाज की जेण्डर में विश्वास करता है जिसका सीधा तात्पर्य यह है कि समाज केवल स्त्री व पुरूष से मिलकर बना है। ऐसी मानसिकता के पोषक तृतीया प्रकृति को कहाँ जगह देंगे। उन्होंने कहा कि एक आसमान के नीचे एक धरती पर रहते है, यहाँ का अन्न, पानी ग्रहण करते है फिर ट्रांस जेण्डर के प्रति इतना भेदभाव क्यों?
अपने वक्तव्य में उन्होंने जेण्डर आधारित संस्कृति व सामाजिक पहचान को खत्म कर सेक्स आधारित पहचान को अपनाने पर बल दिया। और इस बात पर जोर दिया कि स्त्री,स्त्री है क्योकि ईश्वर ने उसको ऐसा बनाया है । विश्व के सम्पूर्ण स्त्री व पुरुष की पहचान उनके लम्बे बाल,दाढ़ी,मूँछ व 56 इंच का सीने से नहीं अपितु ईश्वर द्ववारा प्रदत्त शारिरिक संरचना से है । यदि स्त्री को स्त्री व पुरुष को पुरुष रूप में स्वीकार किया जाता है तो ट्रांसजेंडर को क्यो नहीं । वे भी तो ईश्वर के द्वारा बनाये गए है उनके शरीर में यदि कोई विकार है तो क्या उसके लिए वे जिम्मेदार है? नहीं तो हम उन्हें अपने से अलग क्यो करते है? अभिना जी ने इसी सवाल के समाधान के लिए लोगों को जागृत करने की बात कही । उन्होंने पूछा क्या किसी विकलांग या दिव्यांग को घर से बाहर निकाल दिया जाता है? नहीं,किंतु एक ट्रांसजेंडर के साथ परिवार व समाज के लोग ऐसा व्यहार करते हैं कि वह मजबूर होकर छोड़ देता है । इन सारी समस्याओं को केंद्र में उन्होंने इंसान की मानसिकता को रखा । उनका कहना कि कितने भी कानून बना दिये जाये जब तक हमारी सोच नहीं बदलेगी तब तक नया सूरज निकलने वाला नहीं है । इसके लिए उन्होंने समाज के हर इंसान को आवाहन किया है कि वे मिल जुलकर काम करे और हाशिये पर गए इस समुदाय के लिए सारी संस्थाओ के दरवाज़े खोले जाए । उन्होंने कहा वह अंत समय तक इस समुदाय के लिए काम करती रहेगी जो उनको मुख्यधारा में लाने में सहायक होगा। इसके अतिरिक्त उन्होंने जेण्डर व सेक्स से संबंधित कई बातों का उल्लेख किया ।
इस अवसर पर देश-विदेश के तमाम शोधकार्यकर्ता, आचार्य, सहायक आचार्य और गणमान्य लोग लाइव थे। इस अवसर पर डॉ फ़ीरोज़, डाॅ. शगुफ्ता नियाज़, डाॅ. कामिल, डाॅ. आसिफ, मुनव्वर, डॉ शमीम, प्रोफसर विशाला शर्मा, प्रोफसर मेराज अहमद, महेन्द्र भीष्म, राकेश शंकर, डाॅ. लता, डॉ शमा, डाॅ. अफरोज, डॉ विमलेश, नियाज़ अहमद, अकरम हुसैन, मनीष गुप्ता, दीपांकर, कामिनी, इमरान, राशिद, रिंकी, गिरिजा भारती, अनुराग, अनवर खान,सदफ इश्तियाक, कुसुम सबलानिया, केशव बाजपेयी, रोशनी आदि ने लाइव शो देखा ।
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