वाङ्गमय पत्रिका एवं विकास प्रकाशन कानपुर के तत्वावधान में चल रहे, ट्रांसजेंडर व्याख्यानमाला के चौथे दिन ट्रांस समुदाय से आने वाली संजना सिंह राजपूत ने कार्यक्रम “मेरी कहानी मेरी जबानी” के अंतर्गत ‘मेरी कहानी और जेंडर समानता’ विषय पर वाङ्गमय पत्रिका के पेज के माध्यम से अपनी बात रखी। उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा कि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को बचपन से लेकर जवानी तक जो दर्द झेलना पड़ता है, वह बहुत ही असहनीय होता है। जब किसी घर में कोई बच्चा पैदा होता है तो परिवार और समाज के लोग उसके सेक्स अंग को देखकर ही तय कर देते हैं कि वह लड़का है या लड़की। जबकि हमारे मामले में ऐसा सम्भव नहीं हो सकता। संजना ने एमक्स धनन्जय की बात पर सहमति जताते हुए कहा कि हमारा शरीर एक पुरुष का होता है और आत्मा एक औरत की। किन्नर या ट्रांसजेंडर इन्हीं को कहते हैं। ईश्वर हमें दो तत्वों से नवाज़ता है अर्थात स्त्री और पुरुष लेकिन समाज इसे समझ नहीं पाता है। लोग हमारी अंतरात्मा की आवाज को सुनते ही नहीं, हमारी भावना को समझते ही नहीं। मेरे घरवालों ने भी मेरा लालन-पालन एक लड़के की तरह ही किया था।
संजना ने अपनी कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हम सब पैदा तो इंसान ही होते हैं। कौन लड़का है? कौन लड़की? या फिर कौन किन्नर? यह पहचान तो हमें समाज देता है। मैं जब घर से बाहर निकलना शुरू की तो सबसे पहले समाज ने ही मुझ पर कमेंट कर मेरे स्वरूप को चिन्हित किया। लोग मेरी चाल-ढाल को देख मुझे हिजड़ा/किन्नर आदि कहने लगे। तब पहली बार मुझे भी लगा कि शायद मैं किन्नर ही हूँ ।
उन्होंने अपने घर छोड़ने के सवाल पर कहा कि मेरे मामले में तो शायद परिवार मुझे अपने साथ रखना चाहता था किंतु समाज के रूढ़िवादी विचारों के चलते मेरे परिवार और मुझे दोनों को झुकना पड़ा। अंततः मुझे भी अपना घर त्यागना पड़ा। किसी भी परिवार के लिए अपने ट्रान्स बच्चे को स्वीकार्य कर पाना एक बड़ी चुनौती होती है। परिवार समाज के चलते ही ऐसे बच्चों को स्वीकार्य नहीं कर पाता। संजना ने भारी मन के साथ सामाजिक व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि कभी-कभी मुझे लगता है कि आखिर ऐसा कौन सा पाप हमने किया है कि हमें अपना घर,परिवार, समाज सब छोड़ना पड़ता है। सही मायने में देखा जाए तो हमारी हालत एससी-एसटी से बदतर है। किन्नर समुदाय यदि आज अपनी अलग दुनिया बनाए हुए है तो उसका जिम्मेदार समाज ही है।
संजना की पहचान आज एक सफल इंसान की है। वह मध्य प्रदेश सरकार के समाज कल्याण विभाग में निदेशक के पीए के रूप में कार्यरत हैं। संजना मध्यप्रदेश राज्य की ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की ब्रांड एम्बेसडर भी हैं। उन्होंने अपनी सफलता के पीछे की कहानी के पीछे के राज को स्पष्ट करते हुए कहा कि मुझे परिवार और समाज से जो तकलीफ मिली मैंने उसे हमेशा पॉजिटिव ही लिया है। मेरी हमेशा कोशिश रही है कि मैं खुद को कर्म के माध्यम से सिद्ध करूँ।
उन्होंने अपने वक्तव्य के अंत में किन्नरों की सामाजिक स्थिति की विडंबना पर बात रखते हुए कहा कि हम लोगों के साथ ठीक वैसा ही होता है जैसे हम सभी सत्संग में जाते हैं, साधु-संतों को पूजते हैं, आदर-सत्कार करते हैं लेकिन हमी में से यदि किसी का बेटा साधू-महात्मा बन जाए तो वह दुखी हो जाता है। उसी तरह हमें भी लोग अपने मांगलिक कार्यक्रमों में शामिल करता है, दुआ-आशीष लेता है लेकिन उन्हीं के घर कोई ट्रान्स बच्चा पैदा हो जाए तो वह उसे अभिशाप समझने लगते हैं ।
इसके साथ ही संजना ने सरकार से महिला आयोग की तरह राष्ट्रीय स्तर पर ट्रांसजेंडर आयोग बनाने की भी बात की है। आज के कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शोधार्थी, प्रोफेसर, लेखक आदि बुद्धिजीवी वर्ग जुड़ा रहा ।
इस अवसर पर देश-विदेश के तमाम शोधकार्यकर्ता, आचार्य, सहायक आचार्य और गणमान्य लोग लाइव थे।
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