कानपुर । एम0 एस0 ओ0 कानपुर यूनिट की जानिब से 16 जुलाई ब्रिगेडियर उस्मान के जन्मदिन के मौके पर एक कान्फ्रेंस का अयोजन कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए गरीब नवाज गेस्ट हाउस, बांसमन्डी में किया गया । कान्फ्रेंस की सरपरस्ती काज़ी ए शहर कानपुर मुफ़्ती साकिब अदीब मिस्बाही साहब ने की मुख्य वक्ता के रूप में जौहर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हयात ज़फर हाशमी रहे और सदारत कानपुर यूनिट के अध्यक्ष वासिक बेग बरकाती ने की I कार्यक्रम का संचालन शमीम अशरफी ने किया । कार्यक्रम का आगाज हाफिज मोनिस चिश्ती ने कुरान पाक की आयत पढ़ कर किया इसके बाद एम.एस.ओ. के प्रदेश अध्यक्ष अबू अशरफ ने स्वागती भाषण दिया और अपनी तंजीम एम.एस.ओ. के मकासिद ब्यान करते हुए कहा हमारी तंजीम का मुख्य मकसद नौजवानो को तालीम याफ्ता बनाना है I
इसके बाद टैलेंट हिल एकेडमी के डायरेक्टर सैयद आसिम जमाल ने स्पीच दी और उन्होने एजुकेशन के बारे में तफसीली गुफ्तगु की और लोगो को एजुकेशन के लिए जागरुक किया और कई हदीसों का हवाला देते हुए कहा की अपने बच्चों को सिर्फ दीनी ही तालीम नहीं बल्कि अच्छी से अच्छी दुनियावी तालीम भी दिलाए।
मुख्य वक्ता एमएमए जौहर फैन्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हयात ज़फर हाशमी ने खिताब किया और कहा ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान 15 जुलाई 1912 को पैदा हुए वे भारतीय सैन्य अधिकारी थे। भारत के विभाजन के समय उन्होंने कई अन्य मुस्लिम अधिकारियों के साथ पाकिस्तान सेना में जाने से इन्कार कर दिया और भारतीय सेना के साथ सेवा जारी रखी। हयात ज़फर हाशमी ने आगे कहा ब्रिगेडियर उस्मान 19 मार्च, 1935 को भारतीय सेना नियुक्त हुये। उनको 10वीं बलूच रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में तैनात किया गया। 30 अप्रैल, 1936 को उनको लेफ्टिनेंट की रैंक पर प्रमोशन मिला और 31 अगस्त, 1941 को कैप्टन की रैंक पर। अप्रैल 1944 में उन्होंने बर्मा में अपनी सेवा दी और 27 सितंबर, 1945 को लंदन गैजेट में कार्यवाहक मेजर के तौर पर उनका नामोल्लेख किया गया। उन्होंने 10वीं बलूच रेजिमेंट की 14वीं बटालियन की अप्रैल 1945 से अप्रैल 1946 तक कमान संभाली। आजादी से पहले ब्रिगेडियर उस्मान बलूच रेजिमेंट में थे। जिन्ना और लियाकत अली खां ने उनको मुस्लिम होने का वास्ता दिया और पाकिस्तानी सेना में आने का ऑफर दिया। उनको पाकिस्तानी सेना का प्रमुख बनाने तक का वादा किया गया। लेकिन उन्होंने उस ऑफर को ठुकरा दिया। जनवरी-फरवरी 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान ने नौशेरा और झांगर पर जोरदार हमले के दौरान घुसपैठियों को काफी नुकसान पहुंचाया। दुश्मन बड़ी तादाद में थे जबकि भारतीय सैनिक उनके मुकाबले बहुत कम थे। इसके बावजूद पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। इस अभियान की वजह से उनको नौशेरा का शेर नाम से पुकारा जाने लगा। उस समय पाकिस्तानी सेना ने उनके सिर पर 50,000 रुपये का इनाम रखा था। ब्रिगेडियर उस्मान ने कसम खा रखी थी कि जब तक झांगर को दुश्मन के कब्जे से आजाद नहीं करा लेंगे तब तक चटाई पर ही सोएंगे और वह इस फैसले पर कायम रहे और उन्होंने दुश्मन को इलाके से भगा दिया गया और झांगर पर दोबारा कब्जा हो गया। इस हार से बौखलाए पाक ने मई 1948 में अपनी नियमित सेना को भेजा। एक बार फिर झांगर पर जोरदार गोलीबारी होने लगी। पाकिस्तानी सेना ने झांगर पर कई जोरदार हमले किए। लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान ने झांगर पर कब्जे के पाक के सपने को पूरा नहीं होने दिया। इसी हमले के दौरान 3 जुलाई, 1948 को ब्रिगेडियर उस्मान का निधन हो गया। उनके अंतिम शब्द थे, ‘मैं जा रहा हूं लेकिन उस इलाके को दुश्मन के कब्जे में न जाने दें जिसके लिए हम लड़ रहे थे।’ ब्रिगेडियर उस्मान को उनके प्रेरक नेतृत्व और साहस के लिए ‘महावीर चक्र’ से पुरस्कृत किया गया I इसके बाद काज़ी ए शहर कानपुर मुफ़्ती साकिब अदीब मिस्बाही साहब ने खिताब किया और लोगों से तालीम के लिए जागरूक होने की अपील की और कहा ऐ लोगों अभी भी वक्त है सुधर जाओ बुरे कामो से तौबा कर लो और अच्छे व नेक काम करो और अपने रब को राज़ी कर लो I इसके बाद हाफिज़ मोनिस चिश्ती ने सलाम पढ़ा और शहरकाज़ी ने दुआ की और प्रोग्राम का इख्तेताम हुआ I कान्फ्रेंस में मुख्य रूप से अदनान अहमद बरकाती, हाफिज़ फैसल अज़हरी, साकिब बरकाती, सुहैल बरकाती, आमिर,सैय्यद सुहैल, साहिल खान, शहनावाज अन्सारी, अब्दुल, फैज़ बेग, अज़ीज़ अहमद, राजा अन्सारी, फैसल मंसूरी, हाफिज़ वाहिद अली रज़वी, मौलाना जहूर आलम, यूसुफ़ मंसूरी, हामिद खान, सैय्यद ज़ीशान अली, मोहम्मद ईशान, मोहम्मद इलियास गोपी, मोहम्मद मोहसिन, रईस अन्सारी राजू, एहतेशाम अन्सारी आदि लोग शामिल हुए I
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