कानपुर – हर साल की तरह इस साल भी बज़्मे रज़ा व अहले मुहल्ला कर्नेल गंज कमेटी की जानिब से शनिवार ६ अप्रैल को बकरमंडी ग्राउण्ड मे ३५ वाँ सालाना पैग़ामे औलिया कॉन्फ़्रेंस व उर्स सैय्यद शाह बाबा का आयोजन हुआ। प्रोग्राम की सरपरस्ती बरेली शरीफ़ से आये नबीरे आला हज़रत , हुज़ूर ताजुश्शरिया के छोटे भाई हज़रत अल्लामा मौलाना मन्नान रज़ा खॉं साहब ने की और सदारत क़ाज़ी ए शहर कानपुर मौलाना रियाज़ अहमद हशमती साहब ने की। प्रोग्राम मे शहर के नामचीन मौलानाओ ने शिरकत की। मौलाना शाह आलम बरकाती ने इस्लाही तकरीर की इसके बाद मौलाना हम्माद अनवर बरकाती व मुफ़्ती यूनुस साहब ने तक़रीर की। अयाज़ अत्तारी उन्नावी व शमशाद चिश्ती कानपुरी साहब ने नाते रसूल पढ़ी जिसे सुनकर अकीदतमंदो ने सुब्हान अल्लाह की सदाये बुलन्द की। इसके बाद बरेली शरीफ़ से आये मुकर्रिरे खुसूसी मुफ़्ती हनीफुल क़ादरी साहब ने तकरीर की । मुफ्ती साहब ने इस्लाम के सही मायने समझाने की कोशिश की और कहा की हमारी कौम गुमराही की तरफ़ जा रही है इस्लाम की बतायी हुई तालीम पर अमल नहीं कर रही है । मुफ्ती साहब ने आगे कहा की इस्लाम एक एकेश्वरवादी धर्म है, जो इसके अनुयायीयों के अनुसार, अल्लाह के अंतिम रसूल और नबी, मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम द्वारा मनुष्यों तक पहुंचाई गई अंतिम ईश्वरीय पुस्तक क़ुरआन की शिक्षा पर आधारित है। कुरान अरबी भाषा में रची गई और इसी भाषा में विश्व की कुल जनसंख्या के 25% हिस्से, यानी लगभग 1.6 से 1.8 अरब लोगों, द्वारा पढ़ी जाती है; इनमें से (स्रोतों के अनुसार) लगभग 20 से 30 करोड़ लोगों की यह मातृभाषा है। हजरत मुहम्मद साहब के मुँह से कथित होकर लिखी जाने वाली पुस्तक और पुस्तक का पालन करने के निर्देश प्रदान करने वाली शरीयत ही दो ऐसे संसाधन हैं जो इस्लाम की जानकारी स्रोत को सही करार दिये जाते हैं।मुसलमान एक ही ईश्वर को मानते हैं, जिसे वे अल्लाह कहते हैं। एकेश्वरवाद को अरबी में तौहीद कहते हैं, जो शब्द वाहिद से आता है जिसका अर्थ है एक। इस्लाम में ईश्वर को मानव की समझ से परे माना जाता है। मुसलमानों से इश्वर की कल्पना करने के बजाय उसकी प्रार्थना और जय-जयकार करने को कहा गया है। मुसलमानों के अनुसार ईश्वर अद्वितीय है – उसके जैसा और कोई नहीं। इस्लाम में ईश्वर की एक विलक्षण अवधारणा पर बल दिया गया है और यह भी माना जाता कि उसका सम्पूर्ण विवरण करना मनुष्य से परे है।इस्लाम के अनुसार ईश्वर ने धरती पर मनुष्य के मार्गदर्शन के लिये समय समय पर किसी व्यक्ति को अपना दूत बनाया। लगभग सन्सार मे 124,000 नबी (दूत) एक खुदा को पूजने का सन्देश देने के लिये भेजे गये थे। यह दूत भी इन्सनों में से होते थे और ईश्वर की ओर लोगों को बुलाते थे। ईश्वर इन दूतों से विभिन्न रूपों से समपर्क रखता था। इन को इस्लाम में नबी कहते हैं। जिन नबियों को ईश्वर ने स्वयं, शास्त्र या धर्म पुस्तकें प्रदान कीं उन्हें रसूल कहते हैं। मुहम्मद साहब भी इसी कड़ी का भाग थे। उनको जो धार्मिक पुस्तक प्रदान की गयी उसका नाम कुरान है। कुरान में अल्लाह के 25 अन्य नबियों का वर्णन है। स्वयं कुरान के अनुसार ईश्वर ने इन नबियों के अलावा धरती पर और भी कई नबी भेजे हैं जिनका वर्णन कुरान में नहीं है। सभी मुसलमान ईश्वर द्वारा भेजे गये सभी नबियों की वैधता स्वीकार करते हैं और मुसलमान, मुहम्मद को ईशवर का अन्तिम नबी मानते हैं। अहमदिय्या समुदाय मुहम्मद साहब को अन्तिम नबी नहीं मानता तथापि स्वयं को इस्लाम का अनुयायी कहता है और संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकारा भी जाता है हालांकि कई इस्लामी राष्ट्रों में उसे मुस्लिम मानना प्रतिबंधित है। भारत के उच्चतम न्यायालय के अनुसार उनको भारत में मुसलमान माना जाता है। मुफ्ती साहब ने आगे कहा कि इंसानी जिंदगी में शिक्षा का सबसे अधिक महत्व है। शिक्षा के बगैर इंसान का विकास संभव नहीं है। समाज के भीतर शिक्षा की बेदारी लाई जाए। जब तक लोग शैक्षणिक दृष्टिकोण से जागरूक नहीं होंगे, तब तक सामाजिक कुरीतियों पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। इस्लाम में शिक्षा का महत्व सर्वोपरि है। इस्लाम ने शिक्षा हासिल करने की बड़ी ताकीद की है, इसलिए हमें अपने बच्चों को बेहतर से बेहतर शिक्षा दिलानी चाहिए। शिक्षा हासिल किए बिना मुकम्मल इंसान नहीं बना जा सकता। शहर में जहां-जहां दीनी तालीमगाह की जरुरत होगी। वहां भी यह मकतब कायम करके शिक्षा बच्चों तक पहुंचायी जाएगी। कुरआन एक ऐसी किताब है जो बताती है कि कैसे जिंदगी गुजारना है। हर बात का जिक्र इसमें है। इस मकतब में बच्चे शिक्षा हासिल करने के साथ जिंदगी गुजारने का सलीका भी सीखेंगे। मुफ्ती साहब की तकरीर के बाद मन्नानी मियाँ साहब का ब्यान हुआ और इसके बाद सलातो सलाम व दुआ पर प्रोग्राम का इख्तेताम (समापन) हुआ । प्रोग्राम की निज़ामत वारिस चिश्ती साहब ने की और शहर के हज़ारों लोगों ने प्रोग्राम मे शिरकत की ।
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