ध्रुव ओमर
हम आज़ादी का 70 वां वर्ष मना रहे हैं हमे अंग्रेजों से तो छुटकारा मिल गया लेकिन हमे आज की इस गन्दी राजनीति ने एक बार फिर से गुलाम बना लिया l या फिर कह सकते है हम अपनी मानसिकता से ही गुलाम बने हुवे है. हमारे बुजर्गो (स्वतंत्रता सेनानियों) ने अपना खून देकर हम लोगों को इसीलिए आज़ादी दिलाई थी कि इस आज़ादी के बाद बने सविधान के अनुसार हमे अपने मौलिक अधिकार मिले l मौलिक अधिकार में रोजगार, यातायात, शिक्षा, चिकित्सा, जल आदिl रोजगार हमे कितना मिल रहा है सब जानते हैंl यातायात में सड़क में गड्ढे है या गड्ढे में सड़क इस का फर्क करना कहीं कहीं मुश्किल पड़ जाता है चाहे परिवहन हो या रेलवे इनमें हम एक्सीडेंट नही रोक पाये l शिक्षा का स्तर सरकारी स्कूलों का सब को पता है l आज भी गावँ व शहर के कई हिस्सों में लोग बदबूदार पानी पीने को मजबूर हैंl चिकित्सा इससे बड़ा उदाहरण क्या मिलेगा जो कुछ गोरखपुर के अस्पताल में हो गया. गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में हुये हादसे से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारा चिकित्सा का तंत्र कितना मजबूत हैl जहां दूसरे देश चाँद पर आक्सीजन पहुचाने की कोशिश में लगे हुए है वही हमारे देश मे सरकारी अस्पतालों में बिना आक्सीजन के मासूम बच्चे मर रहे हैं l
जिस देश मे आज़ादी के 70 साल तक अभी स्वच्छता और खुले में शौच की खामियां बता रहें तो समझा जा सकता है हम कितने विकासशील हैं l अभी हमे मंदिर, मस्ज़िद, गाय, गोमूत्र और अज़ान से ही फुर्सत नही. हम अभी इस बहस में लगे है कि कौन लोग भारत में रह सकते है और कौन नहीं. हम अभी इसको निष्कर्ष तक लेकर नहीं जा सके है कि मंदिर में दलित जा सकता है या नहीं. अभी हमको बहस इस पर भी करना है कि अयोध्या में मंदिर बनेगा या फिर मस्जिद. अभी हमको गोमांस के नाम पर और उपद्रव करना है. गो रक्षक के नाम पर हमको किसी को भी मार देना है और नाम आस्था का लगाना है. अभी हम व्यस्त है इसी में कि मुस्लिम चार शादिया क्यों कर सकते है. अभी हमको देखना है कि कौन सा धर्म अच्चा है और कौन से धर्म में बुराई है. अभी हमको आस्था को लेकर सडको पर उपद्रव करना है. इतनी व्यस्तता के बाद हम कैसे देश के विकास की बात कर सकते है. पहले इन मुद्दों को हल कर ले तब तक चाँद पर कोई न कोई आक्सीज़न लेकर पहुच ही जायेगा और फिर हम लोग और अक्सिज़न लेकर चले जायेगे आखिर पहला ही होकर हमको क्या करना है.? पहला कोई भी हो हमको तो पहले ये मुद्दे निपटाने है. तो देश के विकास की क्या सोचें ?
सेवा भाव से शुरू नेतागिरी कब निजी भाव मे बदल गई पता ही नही चला l एक तरफ देश की जनता भूख से मर रही है वहीं नेताओं के घरों से नोटों की गड्डियां बरामद हो रही हैं l लिखने को तो बहुत है लेकिन हक़ीक़त (सत्यता) लिखने का समय नही है क्योंकि अभी हमे अभी ये भी रिपोर्टिंग करनी है कि किन मदरसों में राष्ट्रगान गाया गया कहाँ मौलानाओ द्वारा दिए गए फतवे को माना गया l
हम अपनी कमी ना लिखेंगे और ना ही उस पर नज़र डालेंगे l ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा l जनता की बुनियादी ज़रूरतें कब तक हसरत भरी निगाहों से दम तोड़ती रहेंगी यह एक यक्ष प्रश्न है जो स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर सुरक्षा की भांति मुंह फाड़ कर खड़ा है l
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