थर्ड जेंडर व्याख्यानमाला के अंतर्गत’ ट्रांसजेंडर भ्रांतियां और हकीकत ‘इस विषय पर’ सिमरन सिंह का व्याख्यान महत्वपूर्ण रहा । व्यक्ति की सबसे बड़ी पहचान उसका अपना जीवन होता है विषम परिस्थितियों में ही व्यक्ति अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्षरत होता है और किसी भी व्यक्ति की सही पहचान उसके बाहरी रूप, रंग ,आकृति,के आधार पर नहीं की जा सकती और नहीं विशेष पहचान भाषा प्रदेश ,संप्रदाय आदि तालो मैं बंद कर तय होती है । चिंतन के खुले आकाश में खड़ा व्यक्ति जो नजरिया और सोच रखता है वही उसकी स्वतंत्र पहचान हो सकती है । ऐसी ही अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित करने वाली ट्रांसजेंडर सिमरन सिंह ने जन्मदिन 6 जून के दिन अपने व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों से हमें रूबरू कराया. किन्नरों के विषय में समाज में जो भ्रांतियां हैं उसकी सच्चाई क्या है इसका खुलासा करते हुए अपने श्रोताओं के समक्ष अपने वक्तव्य की प्रस्तुति दी मृत्यु के उपरांत किन्नर शरीर को चप्पलों से मारना अथवा अंतिम विधी के लिए ले जाते समय खड़े रख कर ले जाना ऐसा कुछ भी समाज में नहीं होता है । यहां तक की मृत्यु के पश्चात किन्नर की अंतिम इच्छा को ध्यान में रखते हुए क्रिया कर्म किया जाता है सिमरन जी का मानना था कि मिर्च मसाला लगाकर स्वार्थी लोग अपनी बातें पुस्तकों की लोकप्रियता अथवा समाचार बच्चों की शोभा बढ़ाने के लिए गलत भ्रांतियां फैला देते हैं । लेखक को सोच समझकर लेखन करना चाहिए क्योंकि लेखन स्थाई हो जाता है उनका मानना था कि ताली बजाना अथवा ताली पीटना आवश्यक नहीं है आपकी बातों में वजन होना चाहिए जिसे समाज सुन सके आपने किन्नरों की दुर्दशा के लिए उस परिवार को जिम्मेदार बताया जिस परिवार में किन्नर बच्चे का जन्म होता है सर्वप्रथम वह मां जो अपने बच्चे को अपने गर्भ में पालती है वही मां अपने किन्नर बच्चे से अपनी पहचान को छुपाना चाहती है जिस तरह से एक सामान्य बच्चे को विरासत में मां पिता की संपत्ति घर, नाम मिलता है किन्नरों को यह उम्मीद भी नहीं रखना चाहिए इस तरह का माहौल समाज ने बना दिया है । इसके बाद भी लोग उम्मीद करते हैं कि हम समाज के साथ अच्छा व्यवहार करें अपने जीवन के बारे में बताते हुए कहती हैं मेरे माता-पिता ने मुझे घर से निकाल बाहर कर दिया तीन बार आत्महत्या करने का प्रयास किया परिवार के नजदीकी लोगों के द्वारा यौन शोषण की प्रताड़ना को सहा किसी ने मेरे पक्ष में आवाज नहीं उठाई दूर से देखने वालों ने सिर्फ बेचारा कहा लेकिन अपनाया नहीं जब क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया होती है तो समाज हमसे सभ्यता की उम्मीद रखता है । सिमरन जी ने कर्म की महत्ता को स्थापित करते हुए भी अपनी बात रखी किन्नरों की दुआ का मतलब पैसे देकर दुआ खरीद लेना नहीं होता आप उनसे सही रिश्ते बनाए वे मानती हैं कि वह दया का पात्र नहीं बनना चाहती और नहीं किन्नर सहानुभूति से जीना चाहते हैं उनके साथ गलत व्यवहार ना हो और उन्हें बदनाम नहीं किया जाए हम सामाजिक चुनौतियों का सामना करते हुए सक्षम बनना चाहते हैं किंतु सर्वप्रथम समाज को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा हर ट्रांसजेंडर का दैहिक शोषण अपने आप में शर्मनाक बात है । उनके जीवन की पीड़ा को और अधिक गहरा करने वाला कृत्य समाज उनके साथ करता है उसके पश्चात उम्मीद रखी जाती है इस कृत्य को वह बयान न करें और चुपचाप सहते रहे ऐसे ही उनके जीवन के अनुभव को उन्होंने साझा किया नई समाज के साथ चलने वाली सिमरन जी डेरे में नहीं रहती अकेले रहती हैं किंतु अपने एकाकी जीवन को समाज के साथ जोड़कर सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी जागरूकता वंदनीय है इस वैश्विक संकट के समय एनजीओ के माध्यम से उन्होंने अनाज वितरण का कार्य किया जिसकी सराहना मुंबई और पुणे के समाज ने खुलकर की इस बात की उन्हें प्रसन्नता है लेकिन मैं थोड़ा दुखी तब हो जाती है जब lockdown के समय घर के लोगों ने उनकी खैरियत जानने की कोशिश तक नहीं की. उनका मानना है कि समाज के समक्ष नहीं किंतु फोन पर बात करने से क्या घर की मर्यादा कम हो जाती है परिवार के लोग समाज के डर से हमारा बहिष्कार करते हैं हमारा ही परिवार जब हमें अलग मान चुका है तो समाज हमें कैसे नजदीक लाएगा पैसों की जरूरत पड़ने पर पैसा लेने में हमारे परिवार के लोग नहीं कतराते चाे सिमरन सिंह का मानना था कि ट्रांसजेंडर को दोहरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर ना करें परिवार के लोग जबरन उनकी शादी तो करवा देते हैं किंतु ऐसे व्यवहार से कई किन्नर कि जिंदगी और अधिक मुश्किलोंसे घिर जाती है. उनका मानना है जो समाज स्वयं बदलने की स्थिति में नहीं है वह दूसरों में बदलाव कैसे लाएगा अतः बदलाव के क्रम में सबसे पहले व्यक्तिवादी मनोवृत्ति बाधक है अतः परिस्थितियों से भागो नहीं जागो और बदलो सिमरन सिंह साहित्यकारों लेखकों और पत्रकारों से अपील करती है सहानुभूति के साथ किताबों में उन्हें नहीं उकेरा जाए .लोकप्रियता के लिए किन्नरों का इस्तेमाल न हो वे अपने किन्नर जीवन से पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं और संपूर्ण किन्नर समुदाय की व्यवस्थाओं को समाज के समक्ष रख उन्होंने बेबाकी से अपनी बात का प्रस्तुतीकरण किया ।
इस अवसर पर देश-विदेश के तमाम शोधकार्यकर्ता,आचार्य, सहायक आचार्य और गणमान्य लोग लाइव थे । इस अवसर पर डॉ शमा,डाॅ. रेनू,डाॅ.विजेन्द्र,प्रोफसर विशाला,डाॅ. शमीम,डाॅ.एक.के. पाण्डेय,डाॅ. शगुफ्ता,डाॅ.कामिल,डाॅ. आसिफ,मुनवर,प्रोफसर सीमा सगीर,डाॅ.लता,डाॅ.अफरोज, डाॅ.शाहिद,नियाज़ अहमद,सहसंपादक अकरम हुसैन,सदफ इश्तियाक,कुसुम सबलानिया,मनीष,दीपांकर,कामिनी,इमरान, राशिद,रिंकी,साफिया,गिरिजा भारती,अनुराग,अनवर खान, केशव बाजपेयी,रोशनी आदि ने लाइव शो देखा ।
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