आज वाङ्गमय पत्रिका एवं विकास प्रकाशन कानपुर के तत्त्वावधान में विगत एक माह से चल रहे ऑनलाइन ट्रांसजेंडर व्याख्यानमाला के चौथे चरण की शुरुआत हुई। चौथे चरण के कार्यक्रम “मेरी कहानी मेरी जबानी” के अंतर्गत ‘ट्रांसजेंडर: जीवन और चुनौतियां’ विषय पर विद्या राजपूत ने अपने जीवन अनुभवों को साझा किया। विद्या राजपूत छत्तीसगढ़ सरकार ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड की सदस्य के साथ-साथ एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। आज छत्तीसगढ़ राज्य में विद्या की मितवा समिति ट्रांसजेंडर से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर सक्रिय है। आज पूरे भारतवर्ष में छत्तीसगढ़ राज्य ही एक मात्र ऐसा राज्य है जो ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए सबसे पीसफुल एवम उनसे जुड़े मसलों के लिए सबसे अधिक सचेत नजर आता है। ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड का गठन करने वाला सबसे पहला राज्य छत्तीसगढ़ था,अपने स्कूली एवं ट्रेनिंग पाठ्यक्रम में थर्डजेंडर से सम्बंधित अध्याय जोड़ने वाला पहला राज्य छत्तीसगढ़ है,चिकित्सा के क्षेत्र में खासकर लिंग बदलाव ऑपरेशन की व्यवस्था करने वाला सबसे पहला राज्य छत्तीसगढ़ है, राज्य सरकार की तमाम योजनाओं में थर्डजेंडर को स्थान देने वाला राज्य छत्तीसगढ़ ही है। यह सब यदि छत्तीसगढ़ में सम्भव हुआ है तो उसके पीछे विद्या राजपूत जैसे बहुत से कर्मठ ट्रांसजेंडर सामाजिक कार्यकर्ताओं के चलते ही हुआ है ।
विद्या राजपूत ने वाङ्गमय पत्रिका के वर्चुअल मंच पर अपने जीवन अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि मेरा बचपन बहुत कठिन रहा। शुरू में मुझे लोग लड़की कहकर चिढ़ाते तो मैं उनसे कहती कि मैं लड़की नहीं लड़का हूँ। मैं लड़कियों के साथ लड़कियों वाले खेल खेलती, लड़कियों को ही दोस्त बनाती। मुझे उस उम्र में कुछ समझ नहीं आता था। कक्षा चार-पांच तक तो फिर भी ठीक था, पर जैसे ही मैं कक्षा छह-सात में पहुंची लोगों की जुबान और भी बदल गई। किसी ने कहा हिजड़ा हूँ, किसी ने कहा छक्का हूँ, किसी ने कहा मामू हूँ, मैं लोगों के तानों से डरने लगी। रोज-रोज स्कूल न जाने के बहाने बनाने लग गई। लेकिन स्कूल जाने के लिए मेरी माँ का दबाव मुझ पर बहुत रहता था। इसी वजह से मेरी शिक्षा जारी रह पाई। कभी-कभी मुझे घुटन महसूस होने लगती थी। मेरे मन मे सवाल उठने लगते थे कि मैं हूँ क्या? मेरा शरीर लड़कों का है और भावनाएं लड़कियों की ऐसा क्यों? वह बताती हैं कि मेरी मां और भाइयों को लगता था कि यदि मैं लड़कियों के साथ न रहूं, उनके साथ न खेलूं तो शायद सुधर जाऊं। मेरे भईया तो कई बार जब मुझे लड़कियों के साथ देख लेते थे तो मारते भी थे। मैं मन ही मन घुटते रहने को मजबूर थी। मैने अपने आपको स्वयं में समेट लिया था। मैं लोगों से कटने लगी थी। वह कहती हैं कि उस दौरान मेरा आत्मविश्वास टूट सा गया था।
ट्रांसजेंडर समुदाय की सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि इस समुदाय का अस्तित्व भावनाओं पर टिका है और हम आजतक इनकी भावनाओं को समझ नहीं पाए हैं। हमारी न समझी के चलते इस समुदाय से आने वाले न जाने कितने बच्चे स्वयं को समाप्त कर लेते हैं या फिर डेरों की घुटन भरी स्याह ज़िन्दगी का हिस्सा बन नाच-गा, भीख मांगकर जीवन जीने को मजबूर होते हैं या फिर देह को जीविका का साधन बनाने को मज़बूर होना पड़ता है। 7 से 22 वर्ष तक कि उम्र का जो समय है वह किसी भी ट्रान्स बच्चे के लिए सबसे अहम समय होता है। बढ़ती उम्र के साथ जो स्वयं में आ रहे परिवर्तन, महसूस हो रही भावनाओं, बढ़ रहे शोषण और पहचान के संकट से जो उबर गया वह स्वयं को स्थापित कर लेता है ।
विद्या को भी इस दौर से गुजरना पड़ा जो कि आसान नहीं था। विद्या के अनुसार उन्होंने दो बार आत्महत्या करने का प्रयास किया लेकिन वह बच गईं। वह बताती हैं कि मैं पूरी तरह से टूट चुकी थी किन्तु अपनी माँ के लिए कुछ करना चाहती थी। विद्या की इसी चाहत ने उन्हें बस्तर के अपने गांव से रायपुर पहुंचा दिया। धीरे-धीरे उन्होंने अपनी भावनाओं को बल देना शुरू किया और समुदाय के अन्य लोगों के साथ जुड़ समुदाय के लिए काम करना शुरू किया।
विद्या बताती हैं कि इससे पहले मैं स्वयं भ्रम में थी कि कहीं मैं ही तो गलत नहीं हूं किन्तु अब ऐसा नहीं था। अब मैं जो थी उसी प्रवाह में बहना चाहती थी। विद्या उस दौरान दो बार रिलेशनशिप में भी आई पर वहां भी उन्हें धोखा ही मिला।
वह कहती हैं कि मैने देखा कि हमारी सामाजिक स्वीकार्यता नहीं है,पारिवारिक स्वीकार्यता नहीं है,ज़िंदगी जीने की आजादी नहीं है, यहां तक कि लोग हमारी पर्सनाल्टी को लेकर हमें इंसान तक नहीं समझ रहे। तब मुझे लगा कि नहीं अब मुझे खुलकर बोलना चाहिए।मैं शुरू से डरती आई थी कि यदि मैं खुलकर आई तो मेरे परिवार वालों को समाज को जवाब देना पड़ेगा। मैंने लड़के का रोल करते-करते जीवन के 30 वर्ष बिता दिए थे। लेकिन अब मुझे ऐसे नहीं जीना और इस तरह से मैं धीरे-धीरे खुलती गई। मैंने स्वयं के शरीर को सर्जरी के माध्यम से बदला तब पहली बार मुझे एहसास हुआ कि अब मेरा शरीर और भावना एक है। इस ऑपरेशन के बाद मैं और भी खुश रहने लगी और अधिक आत्मविश्वास के साथ समुदाय के लिए काम करने लगी ।
विद्या ने पूरे वक्तव्य के दौरान श्रोताओं बांधकर रखा और अच्छी संख्या में विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी,प्रोफेसर, लेखक आदि बुद्धिजीवी कार्यक्रम से जुड़े रहे । आज के कार्यक्रम में उषा राजे सक्सेना, प्रो. विशाला शर्मा,डॉ. शगुफ्ता,प्रो. बलराज पांडेय,डॉ. हरेराम,डॉ. जुनैद, डॉ. लता, डॉ. विमलेश, डॉ. कामिल, डॉ. आज़र ख़ान,डॉ. विजेंद्र,डॉ. लवलेश दत्त,डॉ. शमीम, डॉ.आसिफ, अकरम हुसैन, मनीष गुप्ता,रिंकी,सफिया सिद्दीकी,भानु प्रताप,सोनी पांडेय,डिसेंट शाहू,छाया अग्रवाल,अनवर,दीपिका,अनमोल, उर्मिला शर्मा,अभिषेक,डॉ. डालेश,रोशनी,डॉ. शमा,के. मोहन,मिलन,दीप मलिक,प्रदीप कुमार,राशिद,इमरान,सदफ इश्तियाक,कुसुम सलबनियाँ आदि ने लाइव प्रोग्राम में भाग लिया ।
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