कानपुर । वाङ्मय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका,अलीगढ़ एवं हलीम मुस्लिम पी.जी कॉलेज कानपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में भारतवंशी एवं प्रवासी साहित्य पर 4 दिवसीय व्याख्यानमाला में 30 जून 2020 को “प्रवासी हिंदी साहित्य “दशा एवं दिशा” विषय पर ब्रिटेन के कथाकार तेजेन्द्र शर्मा का व्याख्यान हुआ । जिसमें उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्य केवल पहली पीढ़ी के प्रवासियों द्वारा ही रचा जा सकता है । प्रवास की पीड़ा की समझ केवल उसी पीढ़ी को होती है । इसलिये मैं अभिमन्यु अनत,रामदेव धुरंधर और राज हीरामन को प्रवासी लेखक नहीं मानता । वे भारतवंशी लेखक तो हैं मगर प्रवासी नहीं ।
वर्तमान में अधिकांश प्रवासी लेखन ब्रिटेन,अमरीका,कनाडा, युरोप,ऑस्ट्रेलिया,खाड़ी देश,सिंगापुर आदि में हो रहा है क्योंकि इन सब देशों में पहली पीढ़ी के प्रवासी इस साहित्य की रचना कर रहे हैं ।
इन सभी देशों में कविता तो बहुत लंबे अर्से से लिखी जा रही है मगर गंभीर रूप से कहानी और उपन्यास का लेखन काफ़ी देर से शुरू हुआ ।
वर्ष् 1999 तक ब्रिटेन के किसी लेखक का अपना स्वतन्त्र कहानी संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ था । यानि कि प्रवासी कथा साहित्य का इतिहास बहुत पुराना नहीं है ।
प्रवासी उपन्यासकारों में उषा प्रियंवदा,सुषम बेदी,प्रतिभा डावर,भारतेन्दु विमल,नीना पॉल,नरेश भारतीय,अर्चना पेन्युली, सुदर्शन प्रियदर्शिनी,दिव्या माथुर,सुधा ओम ढींगरा,पुष्पिता अवस्थी,हँसा दीप जैसे नाम प्रमुख हैं ।
प्रवासी साहित्यकार के लेखन को तीन स्टेजों में विभाजित किया जा सकता है । किसी भी प्रवासी साहित्यकार का शुरूआती लेखन नॉस्टेलजिया से भरपूर होगा । साहित्यकार जिस भी देश,शहर,गाँव से आया है उसकी क़लम उसकी जड़ों को याद करते हुए अपनी मातृभूमि से जुड़े थीम या घटनाओं पर ही चलेगी फिर वह चाहे कविता लिखे, कहानी या फिर उपन्यास ।
दूसरी स्टेज आने पर लेखक अपने अपनाए हुए देश को एक बाहरी व्यक्ति की तरह देखता है और अब वह सूचनात्मक साहित्य लिखना शुरू करता है जिसमें अपने अपनाए हुए देश के बारे में थोड़े अचरज और थोड़ा प्रशांसत्मक लहजा होता है। इस दौरान उसे अपने अपनाए हुए देश के बारे में और अधिक जानने को मिलता है ।
तीसरी स्टेज में प्रवासी लेखक ऐसा साहित्य रचता है जो कि होता तो उसके अपनाए हुए देश का है मगर उसकी भाषा हिन्दी होती है ।
प्रवासी साहित्य को अलग अलग देशों के भारतीय उच्चायोगों द्वारा भी ख़ासा समर्थन मिलता है । अब तो ब्रिटेन के महारानी ने भी प्रवासी हिन्दी साहित्य को सम्मानित कर प्रवासी साहित्य को गौरवान्वित किया है ।
कथा यूके ने ब्रिटेन, और भारत में प्रवासी सम्मेलनों का आयोजन कर प्रवासी साहित्य को प्रतिष्ठित करने में अहम भूमिका निभाई है । ब्रिटेन में कथा-गोष्ठियों का आयोजन कर यहां हिन्दी कहानी की परम्परा स्थापित करने का प्रयास किया है। कथा लंदन (ब्रिटने के कथाकारों की कहानियां), कथा दशक (कथा यूके द्वारा सम्मानित लेखकों की कहानियां), समुद्र पार हिन्दी ग़ज़ल, ब्रिटेन की हिन्दी क़लम जैसी पुस्तकों का प्रकाशन किया ।
समस्या यह है कि इस समय प्रवासी लेखकों के एवरेज आयु सत्तर वर्ष को छू रही है । उषा वर्मा,उषा राजे सक्सेना, महेन्द्र दवेसर,ज़किया ज़ुबैरी,शैल अग्रवाल,दिव्या माथुर,जय वर्मा,अरुण सभरवाल,कृष्ण कुमार,सुदर्शन प्रियदर्शिनी,रेखा मैत्र,उमेश अग्निहोत्री,भारतेन्दु विमल,सभी सत्तर से अस्सी वर्ष के बीच की आयु तक पहुंच गये हैं । यह समय आमतौर पर रिटायरमेण्ट का होता है ।
प्रवासी हिन्दी साहित्य अपने अस्तित्व के लिये प्रवासी भारतीयों पर निर्भर करता है । आज जो प्रवासी भारत से आ रहे हैं वे सब आई.टी., मेडिसिन, वकालत और फ़ार्मेसी जैसे क्षेत्रों से हैं । वे भारत में भी हिन्दी नहीं पढ़ते फिर भला उनसे यह अपेक्षा कैसे की जा सकती है कि वे हिन्दी में लिखेंगे। फिर भी उम्मीद की ज्योति जल रही है…
प्रवासी हिंदी साहित्य और भारतवंशी साहित्य पर साहित्यकारों ने अपनी-अपनी बात रखी । इन सभी का वाङ्मय परिवार और हलीम कॉलेज परिवार हृदय से आभार व्यक्त करता है । उन लोगों का धन्यवाद जिन्होंने प्रवासी लोगों को ध्यानपूर्वक सुना । डॉ. विमलेश शर्मा,डॉ. लता अग्रवाल,डॉ. भारती अग्रवाल,डॉ. शमीम,डॉ. शगुफ्ता,डॉ. रमाकांत,प्रो. विशाला,डॉ. आसिफ,डॉ. मुश्तकीम,डॉ. पांडेय,डॉ.तनवीर अख्तर,डॉ. शशि तिवारी,डॉ. सविता,डॉ. इरशाद,हफ़ीज़, डॉ.अफ़रोज़,महमूद,अकरम हुसैन,केशव बाजपेयी,रोशनी, पंकज,शिवम,मनीष कुमार,दीपांकर,कामिनी,रिंकी,अनवर खान एवं बहुत से लोग, जिनका नाम नाम रह गया है उन सभी का भी बहुत बहुत धन्यवाद । बहुत से स्टूडेंट भी इस कार्यक्रम से जुड़े रहे उन सभी का भी धन्यवाद। विदेश से बहुत से कथाकार भी जुड़े रहे उनसब का भी धन्यवाद ।
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