वाङ्मय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका, अलीगढ़ एवं विकास प्रकाशन, कानपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में साझी विरासत पर सात दिवसीय व्याख्यानमाला में आज हिंदी साहित्य की प्रतिष्ठित एवं वरिष्ठ कथाकार नासिरा शर्मा ने अपने विचार रखे जिसमे उन्होंने लेखन की रचना प्रक्रिया में बताया कि एक लेखक अपनी लेखनी में वही उतारता है जो उसने अपने परिवेश में जिया और देखा है। मैंने भी ऐसे घर में जन्म लिया है जहाँ के दरवाज़े मज़हब और हर धर्म के लोगों के लिए खुले थे। मोहल्ले में हर तरह के लोग रहते थे जिनके साथ घुलमिलकर रहना और उनके दुख सुख में शरीक होना होता था। धर्म अपनी आत्मा में और समाज में खुलकर मिलता था। मेरे लेखन में हिन्दू चरित्र इसी कारण बड़ी सहजता से अपनी जगह बना लेते हैं। गांव, शहर से नाता रहा इसलिए वह परिवेश भी हमारे साहित्य में उभरा जैसे ज़िंदा मुहावरे में सुंदर काका, ठीकरे की मांगनी में दलित गनपत काका, मगरू और कागज की नाव में भी बचपन के दोस्तों तिरसूली का बयान है। उत्तर प्रदेश को छोड़ कर जहां एक साथ दो भाषाए बराबर से बोली जाती है और खान पान व लिबास में रंगा रगी है जिसको गंगा यमुना संस्कृति कहते हैं जो मेरे उपन्यास में उभरी है विशेषकर अक्षयवट, जीरो रोड, कुइयांजान, पारिजात व पत्थरगली मेरी कहानियों में भी इसकी झलक है। उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त अन्य प्रदेशों में खान पान एक वेशभूषा व बोली एक है बस नाम से आप धर्म का अंदाज़ा लगा सकते है और यही है हमारी साझी संस्कृति का रंग। मेरे घर में जो मुशायरे होते थे उसमें हिन्दू व मुसलमान शायर आते थे। हर पर्व पर हम मिलकर खुश होते थे मगर अब इंसानियत, प्रेम, पड़ोस, भाई चारा, मोहल्लेदारी को उस धर्म ने बाँट दिया है जो मानव प्रेम की बात करता है। हम अखंडता की बात करते हैं परंतु विभिन्नता को स्वीकार नहीं कर पाते है।
साहित्य अकादमी से सम्मानित पारिजात उपन्यास साझी संस्कृति का प्रतीक है जिसमें हुसैनी ब्राह्मण और कर्बला की जंग के साथ नए एवं पुराने लखनऊ की तहज़ीब और नवाबो के योगदान के साथ वहां के धर्मों व संगीत नृत्य में जो मिलावट है वही साझी संस्कृति का प्रमाण है।
इस फेसबुक लाइव में देश-विदेश के अनेक विद्वान शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद थे जिनमें एएमयू के वरिष्ठ प्रोफेसर खालिद यूसुफ संस्कृत विभाग, प्रो. अब्दुल अलीम, दिव्या माथुर, डॉ. ए. के पाण्डेय, कमलेश बख्शी, प्रभा मिश्रा, डॉ. भारती अग्रवाल, डॉ. मुक्ति शर्मा, डॉ. कामिल, डॉ. लवलेश दत्त, डॉ. इकरार, पंकज वाजपेयी, डॉ. शमीम, सय्यद महमूद, डॉ शगुफ्ता नियाज़, डॉ. सरिता, अशोक तिवारी, डॉ. महमूदा ख़ानम, कुसुम सलबनियाँ, सदफ इश्तियाक, अबरार ख़ान, अकरम कादरी, मनीष, रिंकी आदि
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