कानपुर । पैगम्बर ए इस्लाम के दामाद, इस्लाम के चौथे खलीफा, शेरे खुदा मुश्किल कुशा हज़रत मौला अली (रजि०अन०) की शहादत पर खानकाहे हुसैनी हज़रत ख्वाजा सैय्यद दाता हसन सालार शाह (रह०अलै०) की दरगाह पर यौम ए शहादत मनाकर खिराजे ए अकीदत पेश की गयी।
हज़रत ख्वाजा सैय्यद दाता हसन सालार शाह (रह० अलै०) की मज़ार पर गुलपोशी इत्र केवड़ा संदल पेश किया गया उसके बाद शोरा ए कराम ने नात मनकबत पेश की शेरे खुदा हज़रत अली की शहादत पर खिराज ए अकीदत पेश करते हुए उलेमा ए दीन ने कहा कि खामोश है तो दीन की पहचान अली है अगर बोले तो लगता है कुरान अली है। हज़रत अली की विलादत 13 रजब काबा शरीफ के अंदर हुई थी मौला अली 19 रमज़ान 40 हिज़री फज़िर की नमाज़ पढ़ाने के लिए जामा मस्जिद कुफा पहुंचे मस्जिद में मुंह के बल अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम नाम का शख्स सोया हुआ था उसको मौला अली ने नमाज़ के लिए जगाया और खुद नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़े हो गए इब्ने मुल्जिम मस्जिद के एक ख़म्भे के पीछे ज़हर में डूबी तलवार लेकर छिप गया मौला अली ने नमाज़ पढ़ानी शुरु की जैसे ही सजदे के लिए मौला अली ने अपना सिर ज़मीन पर रखा, इब्ने मुलजिम ने ज़हर में डूबी हुई तलवार से अली के सिर पर वार कर दिया तलवार की धार से ज़हर जिस्म में उतर गया 21 रमज़ानुल मुबारक 40 हिजरी को शहादत हुई आपकी उम्र 63 साल थी आपकी नमाज़े जनाज़ा आपके बड़े शहज़ादे हज़रत ए इमाम हसन ने पढ़ाई ।
खानकाहे हुसैनी के साहिबे सज्जादा इखलाक अहमद डेविड चिश्ती ने कहा कि हज़रत मौला अली कहते है कि कभी कामयाबी को दिमाग मे और नाकामी को दिल मे जगह न देना क्योंकि कामयाबी दिमाग मे तकब्बुर और नाकामी दिल मे मायूसी पैदा कर देती है, नमाज़ हमारे लिए ठीक वैसे ही है जैसे एक भूखे के लिए खाना और प्यासे के लिए पानी ज़रुरी होता नमाज़ इस्लाम के लिए ज़रुरी मानवता इस्लाम का चेहरा है ।
नज़र व दुआ मे इखलाक अहमद डेविड चिश्ती, हाफिज़ माज़ हसन, हाफिज़ कफील हुसैन, हाफिज़ मोनिस चिश्ती, हाफिज़ शोएब आलम, हाफिज़ मोहम्मद शकील,शारिक वारसी, फाज़िल चिश्ती,जावेद कादरी,अफज़ाल अहमद आदि थे।
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