● तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम चमनगंज मे उर्स ख्वाजा बंदा नवाज़ मनाया गया
कानपुर । इमामुल अस्फिया, सय्यदुस सादात हज़रते ख़्वाजा बन्दा नवाज़ गेसू दराज़ रजि अल्लाहु अन्हु का तारीख़ी नाम सय्यद मोहम्मद है, आप हज़रते इमामे हुसैन रजि अल्लाहु अन्हु की नस्ले पाक से हैं, 22 वास्तों का आपका शजरा ताजदारे मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिल जाता है
दकन में आपको अकसर बन्दा नवाज़ के नाम से जाना जाता है और इसकी वजह यह है कि उस ज़माने में सादात की निशानी सर के बाल बढ़ाना हुआ करती थी और हज़रते शाह अब्दुल हक़ मोहद्दिसे देहलवी लिखते हैं कि आपके कुछ गेसू (बाल) इतने लम्बे थे कि घुटने से कुछ ऊपर रहते थे इसीलिये आपको गेसू दराज़ कहा जाता है इन ख्यालात का इज़हार तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम चमनगंज मे हुए उर्स ख्वाजा बंदा नवाज़ गेसु दराज़ मे तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फ़ैसल जाफ़री ने किया सोशल डिस्टेंसिंग के साथ हुए उर्स मे उन्होंने आगे कहा कि हज़रत की विलादत (पैदाईश) 7 रजब 781 हिजरी को देहली में हुई 7 साल की उम्र हुई तो सुल्तान तुग़्लक़ ने देहली के लोगों को दौलताबाद जाने को कहा, आपके वालिद अपने अयाल के साथ दौलताबाद आ गए, यहाँ आकर आपने अपने वालिद और नाना से तालीम हासिल की फिर 2 साल बाद वहीं आपके वालिद का इन्तेक़ाल हो गया,आप हाफिज़े क़ुरआन होने के साथ एक ज़बरदस्त आलिम भी थे । चूँकि आपके वालिद और नाना हज़रते महबूबे इलाही से मुरीद थे और आपको अक्सर महबूबे इलाही और नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी के बारे में बताया करते थे तो आपके दिल में चिराग़ देहलवी की मोहब्बत पैदा हो गई, उन्हीं दिनों आपकी वालिदा आपको लेकर फिर देहली आ गई यहाँ आकर 16 रजब 736 हिजरी में आपकी मुलाक़ात हज़रते चिराग़ देहलवी से हो गई और आपने उसी वक़्त उनसे शर्फे बैअत हासिल करली और फिर अपने मुर्शिद की ही बारगाह में खिदमत बजा लाने लगे, मुर्शिद ने भी आपकी खिदमत से ख़ुश होकर आपको तमाम सलासिल की खिलाफत से नवाज़ दिया । आप माहे रजब,शाबान,रमज़ान और ईद के बाद के भी 6 रोज़े रखा करते थे ।
हज़रते चिराग़ देहलवी के विसाल के वक़्त मुरीदीन ने कहा हुज़ूर आप किसी एक को अपना जानशीन बना दें तो आपने फरमाया सबके नाम लिख कर लाओ, एक लम्बी लिस्ट आपको दी गई जिसमें ख़्वाजा बन्दा नवाज़ का नाम नहीं था तो आपने फरमाया इसमें जितने नाम हैं उनमें कोई भी जानशीनी के लाएक़ नहीं तो उसमें कुछ नाम हटा कर फिर पेश की गई आपने फिर देखा तो फरमाया मेरा जानशीन वह है जिसका इसमें नाम नहीं है और वह मेरा चहीता बन्दा नवाज़ है ख़्वाजा बन्दा नवाज़ शरीअत व तरीक़त के बड़े पाबन्द थे, आप अपने मुर्शिद की खिदमत में 17 साल रहे उन दिनों आधी रात को उठ कर अपने मुर्शिद को वुज़ू कराते, मुर्शिद अपने हुजरे में और आप बाहर तहज्जुद और अज़्कार में मसरूफ हो जाते, नमाज़े फजर बा जमाअत अदा फरमाते, फिर नमाजियों को दीनी मसाएल बताते, उसके बाद इशराक़ पढ़ते और कुछ देर आराम फरमाते, बादे नमाज़े ज़ुहर ख़ूब अज़्कार करते, फिर नमाज़े असर पढ़ कर मग़रिब तक तस्बीह पढ़ा करते, बादे इशा फिर लोगों को मसाएल दीनी समझाते, फिर खाना खाकर कुछ देर आराम फरमाते और तहज्जुद में उठ जाते, आपके 17 साल इसी हाल में गुज़रे गुलबर्गा आने के बाद फर्ज़ नमाज़े मस्जिद के अन्दर और बाक़ी नमाज़े सहन में पढ़ते और अपने मुरीदों को हिदायत फरमाते कि नमाज़े इशराक़ ना छोड़ा करें
नमाज़े इशराक़ पढ़ कर अपने अयाल के साथ कुछ खा लेते और खाकर सबको इल्मे तफ्सीर का दर्स देते, नमाज़े ज़ुहर पढ़कर असर तक तिलावते क़ुरआन करते, और मगरिब से इशा तक नवाफिल पढ़ते फिर इशा पढ़ कर मुरीदों के साथ बैठ तर कुछ दीनी मसाएल पर गुफ्तगू फरमाते उसके बाद दस्तर ख़्वान बिछाया जाता और 40-50 लोग आपके साथ खाना खाते, हर दिन एक मुरीद को अपने खाने में से कुछ छोड़ कर बतौरे तबर्रुक उसे दे दिया करते और फिर तहज्जुद से उठ कर फजर तक नमाज़े पढ़ा करते आपका विसाल 16 ज़ीकअदा बरोज़ सोमवार 825 हिजरी में हुआ और मज़ारे पाक गुलबर्गा शरीफ (कर्नाटक) में है इस मौक़े पर फातिहा ख्वानी हुई और कोरोना जैसी वबा से निजात व मुल्क मे अमनो अमान क़ायम रहने की दुआ की गई फिर शीरनी तक़सीम हुई इस मौक़े पर हाजी मोहम्मद हस्सान अज़हरी,महबूब गुफरान अज़हरी,नदीम अन्सारी,कमाल, मोहम्मद नदीम,सोनू,मोहम्मद फिरोज़,मोहम्मद फैसल आदि लोग मौजूद थे ।