वाङ्गमय पत्रिका अलीगढ़ और विकास प्रकाशन कानपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में डॉ. फ़ीरोज़ ख़ान के कुशल नेतृत्त्व में आयोजित सात दिवसीय व्याख्यानमाला के अंतर्गत आज अभिना अहेर जो एक ट्रांसजेंडर एवं ट्रांसजेंडर सशक्तिकरण के लिए दिन रात प्रयासरत है । वाङ्गमय पत्रिका के फेसबुक पेज पर लाइव थी, 13 दिसम्बर 1977 को जन्मी अभिना अहेर ने अपने संघर्षमय जीवन का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया । वह हमसफ़र ट्रस्ट, फैमिली हेल्थ कम्युनिकेशन प्रोग्राम और इण्डिया HIV/AIDS संस्थाओं के साथ काम कर चुकी है वह एक कलाकार और डांसिंग क्वीन्स की संस्थापक है । वह वर्तमान समय मे अलायंस इण्डिया के साथ एसोसिएट डायरेक्टर : जेण्डर सेकसुअलिटी और राइट्स के रूप में काम कर चुकी है ।
आज के व्याख्यान में अपने जीवन पर प्रकाश डालते हए उन्होंने बताया कि तीन वर्ष की उम्र में उनके पापा का निधन हो गया, उनकी मां जो एक कथक नर्तकी थी बहुत ही मुश्किल से उनको पाला । उन्होंने बताया कि शरीर तो उन्हें पुरुष का प्राप्त हुआ,किन्तु आत्मा औरत की वह प्रायः आत्मा की आवाज़ सुनकर औरतों की तरह चलाना,सजना और व्यवहार करने लगी थी । कभी-कभार तो अपनी मां की साड़ी पहनकर मां के जैसा सजना चाहती थी किंतु उस समय उन्हें यह एहसास नही था कि जेण्डर पर निर्मित समाज मे रहने के लिए उन्हें कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी । अपने जीवन के बारे में उन्होंने बताते हुए कहा कि ऐसी कोई संस्था नहीं जहां उनके साथ हिंसा न हुई हो, जहां उन्हें ना सताया गया हो । स्कूल में तो कुछ लड़कों ने तो उस समय हद पार कर दी जब लड़कियों जैसा व्यवहार करने पर उनका दैहिक शोषण किया गया ।
जेण्डर आधारित समाज की मानसिकता की बर्बरता का ज़िक्र करते हुए अभिना अहेर ने कहा कि समाज के हर व्यक्ति के मन मे ट्रांसजेंडर को लेकर कोई ना कोई नकारात्मक विचार है। ऐसा इसलिए है कि हमारा समाज बाइनरी जेण्डर में
आधारित समाज की जेण्डर में विश्वास करता है जिसका सीधा तात्पर्य यह है कि समाज केवल स्त्री व पुरूष से मिलकर बना है। ऐसी मानसिकता के पोषक तृतीया प्रकृति को कहाँ जगह देंगे। उन्होंने कहा कि एक आसमान के नीचे एक धरती पर रहते है, यहाँ का अन्न, पानी ग्रहण करते है फिर ट्रांस जेण्डर के प्रति इतना भेदभाव क्यों?
अपने वक्तव्य में उन्होंने जेण्डर आधारित संस्कृति व सामाजिक पहचान को खत्म कर सेक्स आधारित पहचान को अपनाने पर बल दिया। और इस बात पर जोर दिया कि स्त्री,स्त्री है क्योकि ईश्वर ने उसको ऐसा बनाया है । विश्व के सम्पूर्ण स्त्री व पुरुष की पहचान उनके लम्बे बाल,दाढ़ी,मूँछ व 56 इंच का सीने से नहीं अपितु ईश्वर द्ववारा प्रदत्त शारिरिक संरचना से है । यदि स्त्री को स्त्री व पुरुष को पुरुष रूप में स्वीकार किया जाता है तो ट्रांसजेंडर को क्यो नहीं । वे भी तो ईश्वर के द्वारा बनाये गए है उनके शरीर में यदि कोई विकार है तो क्या उसके लिए वे जिम्मेदार है? नहीं तो हम उन्हें अपने से अलग क्यो करते है? अभिना जी ने इसी सवाल के समाधान के लिए लोगों को जागृत करने की बात कही । उन्होंने पूछा क्या किसी विकलांग या दिव्यांग को घर से बाहर निकाल दिया जाता है? नहीं,किंतु एक ट्रांसजेंडर के साथ परिवार व समाज के लोग ऐसा व्यहार करते हैं कि वह मजबूर होकर छोड़ देता है । इन सारी समस्याओं को केंद्र में उन्होंने इंसान की मानसिकता को रखा । उनका कहना कि कितने भी कानून बना दिये जाये जब तक हमारी सोच नहीं बदलेगी तब तक नया सूरज निकलने वाला नहीं है । इसके लिए उन्होंने समाज के हर इंसान को आवाहन किया है कि वे मिल जुलकर काम करे और हाशिये पर गए इस समुदाय के लिए सारी संस्थाओ के दरवाज़े खोले जाए । उन्होंने कहा वह अंत समय तक इस समुदाय के लिए काम करती रहेगी जो उनको मुख्यधारा में लाने में सहायक होगा। इसके अतिरिक्त उन्होंने जेण्डर व सेक्स से संबंधित कई बातों का उल्लेख किया ।
इस अवसर पर देश-विदेश के तमाम शोधकार्यकर्ता, आचार्य, सहायक आचार्य और गणमान्य लोग लाइव थे। इस अवसर पर डॉ फ़ीरोज़, डाॅ. शगुफ्ता नियाज़, डाॅ. कामिल, डाॅ. आसिफ, मुनव्वर, डॉ शमीम, प्रोफसर विशाला शर्मा, प्रोफसर मेराज अहमद, महेन्द्र भीष्म, राकेश शंकर, डाॅ. लता, डॉ शमा, डाॅ. अफरोज, डॉ विमलेश, नियाज़ अहमद, अकरम हुसैन, मनीष गुप्ता, दीपांकर, कामिनी, इमरान, राशिद, रिंकी, गिरिजा भारती, अनुराग, अनवर खान,सदफ इश्तियाक, कुसुम सबलानिया, केशव बाजपेयी, रोशनी आदि ने लाइव शो देखा ।
समाज को किसी का नाम तय करने का हक़ नहीं – रुद्रांशी
वाड्मय पत्रिका के फ़ेसबुक लाइव पर समाज के ज़रूरी पर वंचित वर्गों पर चर्चा और भावी समाधान की दिशा में व्याख्यान माला का आयोजन किया जा रहा है । इस शृंखला में थर्ड जेण्डर समुदाय की दशा और दिशा पर व्यापक चिंतन-मनन किया जा रहा है । इसी शृंखला में आज अजमेर ,राजस्थान से रुद्रांशी भट्टाचार्य पाठकों और शोधार्थियों से रूबरू हुईं। रुद्रांशी ने इस कार्यक्रम में अपने जीवनानुभवों को विस्तार और बेबाक़ी से बताया । वह बार-बार समाज के दोमुँहेपन पर चोट करती रही साथ ही जीवन जीने का और पूरे सम्मान के साथ जीने का अधिकार सभी को है , पुरज़ोर तरीक़े से कहती रही ।
रुद्रांशी अपने जीवन के बारे में बताते हुए कहती हैं कि बच्चों को यह नहीं पता होता कि कौन क्या है इसलिए पहली दूसरी कक्षा तक कुछ भी असहज नहीं लगा मगर तीसरी चौथी कक्षा तक आते-आते वे बच्चे ही मुझे चिड़ाने लगे थे। यहाँ समाज की समझ दाखिल हो जाती है जो कि शरीर को स्त्री या पुरुष के रूप में देखने की आकांक्षी रहती है । बचपन के इसी मोड़ पर उसके साथ लैंगिक उत्पीड़न की घटना भी घटती है । वह बताती हैं कि इस समाज में न तो बच्चे सुरक्षित हैं,न ही स्त्री और न ही थर्ड जेण्डर। यह समाज उन्हें मीठा, छक्का, हिजड़ा जाने क्या-क्या कहकर उनका उपहास उड़ाता है और यही कारण है कि परिवार पर भी एक सामाजिक दबाव बन जाता है जिससे वे ऐसे बच्चों को त्याग देते हैं ।
वर्तमान समाज में संविधान की मान्य अवधारणाओं को देखें तो हम पाते हैं कि शिक्षा और ससम्मान के साथ जीने का अधिकार सभी को प्राप्त है फिर आख़िर क्यों यह वर्ग शिक्षा से वंचित है ।
रुद्रांशी का काग़ज़ों में नाम रुद्रांश सिंह राठौड़ है वह चाहती है कि उसका नाम और उसकी देह दोनों ही परिवर्तित हो जाए परन्तु सर्जरी के लिए और इन प्रयासों के लिए अभी उसे एक लम्बी लड़ाई लड़नी है । रुद्रांशी एम ए अंग्रेज़ी साहित्य से पढ़ाई कर रही है और वो एक प्रोफेसर बनना चाहती है । वह अपनी लेखनी से उन आँसुओं को भी आवाज़ देती रहती हैं जिन्हें वे बचपन से अकेले बहाती आई है ।
साहसी रुद्रांशी बताती हैं कि समाज के किसी का नाम तय करने का कोई हक़ नहीं है और यदि वे यह कहते हैं कि हिजड़ा वर्ग मनमानी हरकतें करता है , भौंडे प्रदर्शन करता है तो उसका ज़िम्मेदार भी यह समाज ही है । समाज को ज़्यादा कुछ नहीं करना है बस अपनी मानसिकता बदलनी है पर अफ़सोस कि सदियों से वह यह नहीं कर पाया है ।
रूद्रांशी मानोबी बंदोपाध्याय, लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी जी जैसे प्रेरक व्यक्तित्वों को अपना आदर्श मानती है तथी साथ ही हर तरह जूझकर भी प्रोफेसर बनने का ख़्वाब रखती है । वह समर्थ बनना चाहती है ताकि इस वर्ग की बेहतरी के लिए प्रयास कर सके ।
इस अवसर पर उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत अपनी कविता “उसकी रूह जनानी थी” का भी पाठ किया । यह संवाद काफ़ी रोचक और मार्मिक रहा जिसमें यह संदेश दिया गया कि जेण्डर देह सापेक्ष नहीं वरन् सामाजिक रुग्ण मानसिकता का परिचायक है ।
इस अवसर पर देश-विदेश के तमाम शोधकार्यकर्ता,आचार्य, सहायक आचार्य और गणमान्य लोग लाइव थे । इस अवसर पर डॉ फ़ीरोज़,डाॅ. शगुफ्ता,डाॅ.कामिल,डाॅ.आसिफ,मुनवर, महेन्द्र भीष्म,राकेश शंकर,डाॅ.लता,डाॅ.अफरोज,डॉ विमलेश, नियाज़ अहमद,अकरम,मनीष,दीपांकर,कामिनी,इमरान,राशिद, रिंकी,गिरिजा भारती,अनुराग,अनवर खान,केशव बाजपेयी, रोशनी आदि ने लाइव शो देखा ।
इस संवाद में अनेक शोधार्थियों,प्रवक्ताओं और लेखकों ने भी अपने विचार और प्रश्न रखे ।
SC,ST और महिलाओं की तरह ट्रांसजेंडर को भी मिले राजनैतिक आरक्षण – कंचन सेंदरे
भारत मे आरक्षण पर लगातार बहस हो रही है सबके विचार भिन्न-भिन्न है, सबका दृष्टिकोण अलग अलग है सब अपने अपने हिसाब से एक दूसरे को कठघरे में खड़ा करते है लेकिन संविधान में आरक्षण का प्रावधान है उसका लाभ लगातार उन समाज को मिल रहा है । जिसके वह लायक भी है आज भी उनकी सामाजिक और राजनैतिक स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई अनेक राजनैतिक संघटनो ने इस संदर्भ में काफी बहस भी की कि किसी भी प्रकार से दलितों,पिछडो को मिलने वाला आरक्षण खत्म हो जाये जिसके कारण वर्तमान सरकार ने सामान्य वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण दे दिया जिसके कारण बहुत लोगो को लाभ भी पहुंच रहा है जबकि वो सामाजिक,धार्मिक और राजनैतिक तौर पर पिछड़े नहीं है लेकिन वोट बैंक की पॉलिटिक्स के कारण भारत सरकार ने इस मुद्दे को भुनाने का प्रयत्न किया।
वर्तमान परिस्थितियों में अगर देखा जाए तो हम देखते है कि ट्रांसजेंडर सामाजिक और राजनैतिक तौर पर सबसे ज्यादा पिछड़े हुए है ना ही उनको शिक्षा में कोई स्थान है ना ही किसी सरकारी या गैर सरकारी नोकरी में कुछ आरक्षण मिलता है बल्कि उनको समाज बड़ी हेय दृष्टि से देखता है अजीब अजीब नामो से पुकारा जाता है, बचपन मे ही उनके परिवार द्वारा उनको छोड़ दिया जाता है उनको कोई देखने वाला नहीं था ऐसी स्थिति में उनको जीवन को यथाचित गुज़र करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है किशोरावस्था में परिवार द्वारा त्यागने की पीढ़ा को समझा जा सकता है । दूसरी तरह जेण्डर के कारण समाज भी उनको नकार देता है जिसके दर्द को वो ही भलीभांति समझते है जो इन दिक्कतों का सामना करते है ।
कंचन सेंदरे ने अपने जीवन की दुःखद कहानी को शेयर करते हुए कहा कि जब परिवार ने मुझे किशोरावस्था में त्यागा था तब बड़ी मुश्किलों से मुझे जीवन गुज़ारना पड़ा इधर उधर ठोकरे खाई, किन्नर समाज ने मुझे जीने का अधिकार दिया । मैंने अपने समाज की लड़ाई को लड़ने के लिए लड़को की तरह शिक्षा ग्रहण की किसी को यह एहसास नहीं होने दिया कि मैं ट्रांसजेंडर हूं बल्कि मेहनत से पढ़ाई करके मैंने समाज के सामाजिक कार्यो को तवज्जो दी विधानसभा का चुनाव लड़ा जीत हासिल नहीं कर सकी लेकिन लोगो के दिलो को जीता निर्दलीय लड़ने के बाद मैं तीसरे स्थान पर रही जबकि लोगो ने मुझे सपोर्ट भी किया और पैसा भी दिया ।
वर्तमान स्थिति के अनुसार अगर ट्रांसजेंडर को विकास करना है तो राजनीति में आना है समाज से खुद को जोड़ना होगा जिससे हम समाज के और स्वयं के अधिकार ग्रहण कर सके
जिनमें इस अवसर पर देश-विदेश के तमाम शोधकार्यकर्ता, आचार्य, सहायक आचार्य और गणमान्य लोग लाइव थे। इस अवसर पर डॉ शमा, डाॅ. विजेन्द्र,डाॅ. शमीम, डाॅ. एक.के. पाण्डेय, डाॅ. शगुफ्ता नियाज़,डाॅ. कामिल, डाॅ. आसिफ, मुनवर,डाॅ.लता,डाॅ.अफरोज,अकरम हुसैन, मनीष, दीपांकर, कामिनी,इमरान, राशिद, रिंकी, साफिया, गिरिजा भारती, अनुराग, अनवर खान, केशव बाजपेयी, रोशनी आदि ने लाइव शो देखा ।
हम तो इंसान है,समाज किन्नर समझता है – संजना
वाङ्गमय पत्रिका एवं विकास प्रकाशन कानपुर के तत्वावधान में चल रहे, ट्रांसजेंडर व्याख्यानमाला के चौथे दिन ट्रांस समुदाय से आने वाली संजना सिंह राजपूत ने कार्यक्रम “मेरी कहानी मेरी जबानी” के अंतर्गत ‘मेरी कहानी और जेंडर समानता’ विषय पर वाङ्गमय पत्रिका के पेज के माध्यम से अपनी बात रखी। उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा कि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को बचपन से लेकर जवानी तक जो दर्द झेलना पड़ता है, वह बहुत ही असहनीय होता है। जब किसी घर में कोई बच्चा पैदा होता है तो परिवार और समाज के लोग उसके सेक्स अंग को देखकर ही तय कर देते हैं कि वह लड़का है या लड़की। जबकि हमारे मामले में ऐसा सम्भव नहीं हो सकता। संजना ने एमक्स धनन्जय की बात पर सहमति जताते हुए कहा कि हमारा शरीर एक पुरुष का होता है और आत्मा एक औरत की। किन्नर या ट्रांसजेंडर इन्हीं को कहते हैं। ईश्वर हमें दो तत्वों से नवाज़ता है अर्थात स्त्री और पुरुष लेकिन समाज इसे समझ नहीं पाता है। लोग हमारी अंतरात्मा की आवाज को सुनते ही नहीं, हमारी भावना को समझते ही नहीं। मेरे घरवालों ने भी मेरा लालन-पालन एक लड़के की तरह ही किया था।
संजना ने अपनी कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हम सब पैदा तो इंसान ही होते हैं। कौन लड़का है? कौन लड़की? या फिर कौन किन्नर? यह पहचान तो हमें समाज देता है। मैं जब घर से बाहर निकलना शुरू की तो सबसे पहले समाज ने ही मुझ पर कमेंट कर मेरे स्वरूप को चिन्हित किया। लोग मेरी चाल-ढाल को देख मुझे हिजड़ा/किन्नर आदि कहने लगे। तब पहली बार मुझे भी लगा कि शायद मैं किन्नर ही हूँ ।
उन्होंने अपने घर छोड़ने के सवाल पर कहा कि मेरे मामले में तो शायद परिवार मुझे अपने साथ रखना चाहता था किंतु समाज के रूढ़िवादी विचारों के चलते मेरे परिवार और मुझे दोनों को झुकना पड़ा। अंततः मुझे भी अपना घर त्यागना पड़ा। किसी भी परिवार के लिए अपने ट्रान्स बच्चे को स्वीकार्य कर पाना एक बड़ी चुनौती होती है। परिवार समाज के चलते ही ऐसे बच्चों को स्वीकार्य नहीं कर पाता। संजना ने भारी मन के साथ सामाजिक व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि कभी-कभी मुझे लगता है कि आखिर ऐसा कौन सा पाप हमने किया है कि हमें अपना घर,परिवार, समाज सब छोड़ना पड़ता है। सही मायने में देखा जाए तो हमारी हालत एससी-एसटी से बदतर है। किन्नर समुदाय यदि आज अपनी अलग दुनिया बनाए हुए है तो उसका जिम्मेदार समाज ही है।
संजना की पहचान आज एक सफल इंसान की है। वह मध्य प्रदेश सरकार के समाज कल्याण विभाग में निदेशक के पीए के रूप में कार्यरत हैं। संजना मध्यप्रदेश राज्य की ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की ब्रांड एम्बेसडर भी हैं। उन्होंने अपनी सफलता के पीछे की कहानी के पीछे के राज को स्पष्ट करते हुए कहा कि मुझे परिवार और समाज से जो तकलीफ मिली मैंने उसे हमेशा पॉजिटिव ही लिया है। मेरी हमेशा कोशिश रही है कि मैं खुद को कर्म के माध्यम से सिद्ध करूँ।
उन्होंने अपने वक्तव्य के अंत में किन्नरों की सामाजिक स्थिति की विडंबना पर बात रखते हुए कहा कि हम लोगों के साथ ठीक वैसा ही होता है जैसे हम सभी सत्संग में जाते हैं, साधु-संतों को पूजते हैं, आदर-सत्कार करते हैं लेकिन हमी में से यदि किसी का बेटा साधू-महात्मा बन जाए तो वह दुखी हो जाता है। उसी तरह हमें भी लोग अपने मांगलिक कार्यक्रमों में शामिल करता है, दुआ-आशीष लेता है लेकिन उन्हीं के घर कोई ट्रान्स बच्चा पैदा हो जाए तो वह उसे अभिशाप समझने लगते हैं ।
इसके साथ ही संजना ने सरकार से महिला आयोग की तरह राष्ट्रीय स्तर पर ट्रांसजेंडर आयोग बनाने की भी बात की है। आज के कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शोधार्थी, प्रोफेसर, लेखक आदि बुद्धिजीवी वर्ग जुड़ा रहा ।
इस अवसर पर देश-विदेश के तमाम शोधकार्यकर्ता, आचार्य, सहायक आचार्य और गणमान्य लोग लाइव थे।
शारीरिक बनाबट नहीं आत्मा की संवेदना समझे आखिर हम भी इंसान है- सिमरन सिंह
थर्ड जेंडर व्याख्यानमाला के अंतर्गत’ ट्रांसजेंडर भ्रांतियां और हकीकत ‘इस विषय पर’ सिमरन सिंह का व्याख्यान महत्वपूर्ण रहा । व्यक्ति की सबसे बड़ी पहचान उसका अपना जीवन होता है विषम परिस्थितियों में ही व्यक्ति अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्षरत होता है और किसी भी व्यक्ति की सही पहचान उसके बाहरी रूप, रंग ,आकृति,के आधार पर नहीं की जा सकती और नहीं विशेष पहचान भाषा प्रदेश ,संप्रदाय आदि तालो मैं बंद कर तय होती है । चिंतन के खुले आकाश में खड़ा व्यक्ति जो नजरिया और सोच रखता है वही उसकी स्वतंत्र पहचान हो सकती है । ऐसी ही अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित करने वाली ट्रांसजेंडर सिमरन सिंह ने जन्मदिन 6 जून के दिन अपने व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों से हमें रूबरू कराया. किन्नरों के विषय में समाज में जो भ्रांतियां हैं उसकी सच्चाई क्या है इसका खुलासा करते हुए अपने श्रोताओं के समक्ष अपने वक्तव्य की प्रस्तुति दी मृत्यु के उपरांत किन्नर शरीर को चप्पलों से मारना अथवा अंतिम विधी के लिए ले जाते समय खड़े रख कर ले जाना ऐसा कुछ भी समाज में नहीं होता है । यहां तक की मृत्यु के पश्चात किन्नर की अंतिम इच्छा को ध्यान में रखते हुए क्रिया कर्म किया जाता है सिमरन जी का मानना था कि मिर्च मसाला लगाकर स्वार्थी लोग अपनी बातें पुस्तकों की लोकप्रियता अथवा समाचार बच्चों की शोभा बढ़ाने के लिए गलत भ्रांतियां फैला देते हैं । लेखक को सोच समझकर लेखन करना चाहिए क्योंकि लेखन स्थाई हो जाता है उनका मानना था कि ताली बजाना अथवा ताली पीटना आवश्यक नहीं है आपकी बातों में वजन होना चाहिए जिसे समाज सुन सके आपने किन्नरों की दुर्दशा के लिए उस परिवार को जिम्मेदार बताया जिस परिवार में किन्नर बच्चे का जन्म होता है सर्वप्रथम वह मां जो अपने बच्चे को अपने गर्भ में पालती है वही मां अपने किन्नर बच्चे से अपनी पहचान को छुपाना चाहती है जिस तरह से एक सामान्य बच्चे को विरासत में मां पिता की संपत्ति घर, नाम मिलता है किन्नरों को यह उम्मीद भी नहीं रखना चाहिए इस तरह का माहौल समाज ने बना दिया है । इसके बाद भी लोग उम्मीद करते हैं कि हम समाज के साथ अच्छा व्यवहार करें अपने जीवन के बारे में बताते हुए कहती हैं मेरे माता-पिता ने मुझे घर से निकाल बाहर कर दिया तीन बार आत्महत्या करने का प्रयास किया परिवार के नजदीकी लोगों के द्वारा यौन शोषण की प्रताड़ना को सहा किसी ने मेरे पक्ष में आवाज नहीं उठाई दूर से देखने वालों ने सिर्फ बेचारा कहा लेकिन अपनाया नहीं जब क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया होती है तो समाज हमसे सभ्यता की उम्मीद रखता है । सिमरन जी ने कर्म की महत्ता को स्थापित करते हुए भी अपनी बात रखी किन्नरों की दुआ का मतलब पैसे देकर दुआ खरीद लेना नहीं होता आप उनसे सही रिश्ते बनाए वे मानती हैं कि वह दया का पात्र नहीं बनना चाहती और नहीं किन्नर सहानुभूति से जीना चाहते हैं उनके साथ गलत व्यवहार ना हो और उन्हें बदनाम नहीं किया जाए हम सामाजिक चुनौतियों का सामना करते हुए सक्षम बनना चाहते हैं किंतु सर्वप्रथम समाज को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा हर ट्रांसजेंडर का दैहिक शोषण अपने आप में शर्मनाक बात है । उनके जीवन की पीड़ा को और अधिक गहरा करने वाला कृत्य समाज उनके साथ करता है उसके पश्चात उम्मीद रखी जाती है इस कृत्य को वह बयान न करें और चुपचाप सहते रहे ऐसे ही उनके जीवन के अनुभव को उन्होंने साझा किया नई समाज के साथ चलने वाली सिमरन जी डेरे में नहीं रहती अकेले रहती हैं किंतु अपने एकाकी जीवन को समाज के साथ जोड़कर सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी जागरूकता वंदनीय है इस वैश्विक संकट के समय एनजीओ के माध्यम से उन्होंने अनाज वितरण का कार्य किया जिसकी सराहना मुंबई और पुणे के समाज ने खुलकर की इस बात की उन्हें प्रसन्नता है लेकिन मैं थोड़ा दुखी तब हो जाती है जब lockdown के समय घर के लोगों ने उनकी खैरियत जानने की कोशिश तक नहीं की. उनका मानना है कि समाज के समक्ष नहीं किंतु फोन पर बात करने से क्या घर की मर्यादा कम हो जाती है परिवार के लोग समाज के डर से हमारा बहिष्कार करते हैं हमारा ही परिवार जब हमें अलग मान चुका है तो समाज हमें कैसे नजदीक लाएगा पैसों की जरूरत पड़ने पर पैसा लेने में हमारे परिवार के लोग नहीं कतराते चाे सिमरन सिंह का मानना था कि ट्रांसजेंडर को दोहरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर ना करें परिवार के लोग जबरन उनकी शादी तो करवा देते हैं किंतु ऐसे व्यवहार से कई किन्नर कि जिंदगी और अधिक मुश्किलोंसे घिर जाती है. उनका मानना है जो समाज स्वयं बदलने की स्थिति में नहीं है वह दूसरों में बदलाव कैसे लाएगा अतः बदलाव के क्रम में सबसे पहले व्यक्तिवादी मनोवृत्ति बाधक है अतः परिस्थितियों से भागो नहीं जागो और बदलो सिमरन सिंह साहित्यकारों लेखकों और पत्रकारों से अपील करती है सहानुभूति के साथ किताबों में उन्हें नहीं उकेरा जाए .लोकप्रियता के लिए किन्नरों का इस्तेमाल न हो वे अपने किन्नर जीवन से पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं और संपूर्ण किन्नर समुदाय की व्यवस्थाओं को समाज के समक्ष रख उन्होंने बेबाकी से अपनी बात का प्रस्तुतीकरण किया ।
इस अवसर पर देश-विदेश के तमाम शोधकार्यकर्ता,आचार्य, सहायक आचार्य और गणमान्य लोग लाइव थे । इस अवसर पर डॉ शमा,डाॅ. रेनू,डाॅ.विजेन्द्र,प्रोफसर विशाला,डाॅ. शमीम,डाॅ.एक.के. पाण्डेय,डाॅ. शगुफ्ता,डाॅ.कामिल,डाॅ. आसिफ,मुनवर,प्रोफसर सीमा सगीर,डाॅ.लता,डाॅ.अफरोज, डाॅ.शाहिद,नियाज़ अहमद,सहसंपादक अकरम हुसैन,सदफ इश्तियाक,कुसुम सबलानिया,मनीष,दीपांकर,कामिनी,इमरान, राशिद,रिंकी,साफिया,गिरिजा भारती,अनुराग,अनवर खान, केशव बाजपेयी,रोशनी आदि ने लाइव शो देखा ।
ट्रांसजेंडर: शिक्षा का अधिकार-धनंजय चैहान
कानपुर । ऐसा कहा जाता है कि साहित्य समाज का आईना है, जिस तरह से हम आइने में अपनी सूरत देखते हैं वैसे ही समाज की सूरत साहित्य में दिखाई पड़ती है । लाकडाउन की अवधि में समाज के बहुत सारे ज्वलंत मुद्दों पर सोशल मीडिया के माध्यम से लाइव होकर देश के हर कोने से विद्वतजनों ने अपनी बात रखी। कुछ ऐसा ही प्रयास हलीम मुस्लिम पी.जी. काॅलेज के सहायक आचार्य, डाॅ. एम. फिरोज खान ने वाङ्मय पत्रिका एवं विकास प्रकाशन के संयुक्त तत्वाधान में ‘किन्नर विमर्श’ पर किया । एक ऐसा समुदाय जिसके बारे में लोग बात करने से कतराते थे उस पर व्याख्यानमाला की तीन श्रृंखलाएँ आयोजित की गयीं । तीसरी श्रृंखला सात दिनों तक अनवरत चलती रहेगी जिसमें केवल किन्नर समुदाय के ही लोग अपनी बात रखेंगे। इस व्याख्यानमाला के दूसरे दिन एम एक्स धनंजय चैहान, सदस्य ट्रांसजेण्डर कल्याण बोर्ड, चण्डीगढ़, अध्यक्ष सक्षम ट्रस्ट ने ‘ट्रांसजेण्डर: शिक्षा का अधिकार’ पर अपनी बात रखी।
लेक्चर का प्रारंभ उन्होंने समाज की उस मानसिकता को दर्शाते हुए किया जो केवल स्त्राी व पुरुष की बात करता है जहाँ तृतीय प्रकृति के लिए कोई जगह नहीं है। धनंजय मैम ने कहा कि हमें जेण्डर पर आधारित सोच को बदलना पड़ेगा क्योंकि जेण्डर हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान है जबकि हमें अपनी मौलिक, लैंगिक पहचान जो सेक्स पर आधारित है को स्वीकार करना चाहिए। एक आदमी की जैविक पहचान उसके अंदर की भावनाओं पर निर्भर करती है। यदि किसी स्त्राी को पुरुष का शरीर प्राप्त हो गया किंतु आत्मा औरत की है तो वह हमेशा औरतों जैसा ही व्यवहार करने का प्रयास करेगी परंतु इस चीज को समाज स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि समाज ने जेण्डर रूपी चश्मा धारण किया है जिसे बदलने की जरूरत है।
धनंजय जी ने बीते हुए काल में ट्रांसजेण्डर की मौजूदगी का एहसास इतिहास के पन्नों को पलट कर कराया। वृहन्नला, मोहिनी, अरावन, अर्द्धनारीश्वर बहुचरा माता, शिखण्डी, मलिक काफूर व मुगल सल्तनत के समय के तमाम उदाहरण देकर उनकी सम्मानजनक स्थिति से अवगत कराया। ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा पारित 1871 के एक्ट को उन्होंने मुख्य कारण बताया जो इस समुदाय को हाशिए पर ले गया। परिवार व समाज की क्रूरता ने इन्हें मुख्य धारा से अलग कर दिया। मैडम ने बहुत ही तार्किक प्रश्न किया कि जब एक ही माँ-बाप से जन्म लिये हुए लड़का या लड़की परिवार में माँ-बाप के साथ रह सकता है तो एक ट्रांसजेण्डर क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि हम दूसरे ग्रह से नहीं आये हैं और न ही हमारे लिए कोई अलग धरती है। हम संघर्ष करते रहे थे सम्मान के साथ जीने के लिए और अपने अधिकारों को लेकर रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि लोग कहते हैं हम भीख माँगते हैं, कमाते नहीं हैं, मुझे बताया जाये कि रोजगार के कौन से दरवाजे हमारे लिए खोले गये हैं? उनका आह्नान था कि समाज हमें लाचार या मजबूर की निगाहों से न देखे बल्कि कंधे से कंधा मिलाकर हमारे साथ खड़ा हो तो हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर लेंगे।
मैडम ने 15 अप्रैल 2014 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय को ऐतिहासिक बताया परंतु यह भी कहा कि इसका क्रियान्वयन अभी तक नहीं हुआ है। ट्रांसजेण्डर पर्सन बिल 2019 को उन्होंने अच्छा कदम माना किंतु, सुधार की बहुत सारी गुंजाइश जैसे खुद से अपना सेक्स चुनने का अधिकार, बच्चे गोद लेने का अधिकार व ट्रांसजेण्डर को परेशान किये जाने पर दण्ड का प्रावधान का प्रबंध किये जाने की बात कही।
शिक्षा के संदर्भ में उन्होंने कहा कि हमारे समुदाय के लिए अलग से काॅलेज या विश्वविद्यालय खोले जाने की जरूरत नहीं है, हम साथ पढ़ेंगे तभी बदलाव आयेगा। उन्होंने शिक्षण संस्थाओं में अलग ट्रांसजेण्डर शौचालय बनाये जाने की माँग की। उनके अथक प्रयास से चण्डीगढ़ विश्वविद्यालय ने ऐसा किया भी। एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने अपने द्वारा किये गये प्रयासों पर प्रकाश डाला। उनकी व्यक्तिगत जिंदगी दुःखों से भरी पड़ी है किंतु प्रबल इच्छा से उन्होंने वह मुकाम हासिल किया है जो और लोग नहीं कर पाये। उन्होंने कहा कि जेण्डर जस्टिस की परिकल्पना तभी साकार होगी जब भारत का प्रधानमंत्राी कोई ट्रांसजेण्डर होगा ।
इस अवसर पर देश-विदेश के तमाम शोधकार्यकर्ता,आचार्य, सहायक आचार्य और गणमान्य लोग लाइव थे । इस अवसर पर भगवानदास मोरवाल,मीरा परीदा,डाॅ. रेनू,डाॅ.विजेन्द्र, डाॅ.रमाकान्त,प्रो. मेराज,अरुणा सभरवाल,डाॅ. शमीम,डाॅ. एक.के. पाण्डेय,डाॅ. शगुफ्ता,डाॅ. कामिल,डाॅ.आशिफ, डाॅ.विमलेश,डाॅ. लता,डाॅ.अफरोज,डाॅ.अंजना वर्मा, अकरम,मनीष,दिपांकर,कामिनी,इमरान,रासिद,साफिया, गिरिजा भारती,अनुराग,अनवर खान,केशव बाजपेयी,मिताली सिंह,सुनीता जैन,रोशनी आदि ने लाइव शो देखा ।
इस साल अलविदा,अलविदा के बाद अब अल्लाह हू अकबर,अल्लाह हू अकबर की आवाज नहीं गूंजेगी फिजाओं में
सिद्दार्थ ओमर
कानपुर । पाकिस्तानी लेखक शाह खान द्वारा लिखी गई नात वह धूपों में तपती जमीनों पर सजदे जमीन पूछती है नमाजी कहां है इस कोविड-19 महामारी में रमजान ईद के मौके पर सटीक बैठती है । मस्जिदों एव ईद गाह की जमीन पर सजदे करने को मुस्लिम बेकराल तो हैं लेकिन कोविड 19 की गाइड लाइन को मानना भी इबादत मान रहा है मुस्लिम समाज में रमजान का महीना इबादत का महीना होता है ऐसा मत है कि इस महीने में एक नेकी के बदले 70 नेकिया मिलती हैं परंतु कोविड-19 महामारी के चलते सभी धार्मिक स्थल बंद है लेकिन रमजान माह होने के कारण मस्जिदों का बंद होने से मुस्लिम समाज मायूस है who कोविड 19 की गाइड लाइन में इस महामारी का बचाव सोशल डिस्टेंस है । रमज़ान का आखिरी जुमा अलविदा होता है । जिस को छोटी ईद के नाम से भी जाना जाता है जिस को मुस्लिम समाज नही बना पाया । अब ईद की नमाज़ भी मस्जिदों में नही होगी । इस को भी जुमे की तरह घर पर ही पढ़नी होगी । बड़ी ईद गाह बजरिया में हज़ारों की तादाद में मुस्लिम भाई नमाज पढ़ने अल्लाह हू अकबर अल्लाह हू अकबर पढ़ते हुए पहुँचते थे । ईद गाह में साल में सिर्फ दो नमाज़े ईद एव बकरीद की होती है । जिस का मुस्लिम समाज बड़ी बेसब्री से इंतेज़ार करता है । ईद गाह में इन नमाजों की तैयारियां 15 दिन पहले से शुरू की जाती हैं । हालाकि ईद गाह कमेटी ने उम्मीद पर अपनी तैयारियां पूरी की हुई थीं । लेकिन सोशल डिस्टेंस मेंटेन रखने के कारण सभी धार्मिक स्थल बंद है एव सभी धार्मिक कार्यक्रम आयोजन पर रोक है ।
कानपुर में गंगा जमुना की तहजीब में अंतिम यात्रा में मुस्लिमो ने दिया कन्धा
शाह मोहम्मद
“नफरतें सब्जियां नहीं बेचने दे रही हैं बाजार में,मोहब्बतें कंधा देने को तैयार हैं अंतिम संस्कार में।”
कानपुर । गंगा जमुना की तहजीब कहे जाने वाले कानपुर में दिखा हिन्दू मुस्लिम का भाईचारा के बीच मे पिछले कुछ दिनों पहले थाना बाबू पुरवा के मुंशी पुरवा में कुछ कोरोना से संक्रमित मरीज मिले जिसके बाद वो क्षेत्र हॉट स्पॉट में बदल गया वही आज वहां के रहने वाले डॉक्टर बिन्नी कुमार के भाई डब्लू की सास जिनकी उम्र करीब 103 वर्ष की थी जिनकी आज लंबी बीमारी के चलते आकस्मिक निधन हो गया लाकडॉन वा हॉट स्पॉट क्षेत्र में होने के कारण उनके अपने रहने वाले पास वा दूर दराज से कोई भी अपना वा रिस्तेदार नही पहुंच सका घर में 3 व्यक्ति थे ऐसी आपदा को देख क्षेत्रिय मुस्लिम आए आगे वा हिन्दू रीति रिवाजों के अनुसार किया अंतिम संस्कार जिसमे मुख्य रूप से मो.शरीफ, बब्लू, मो.इमरान, मो.आफाक, मो.उमर, जुगनू, भूलू, मो.लतीफ, मो.नौशाद, मो.तौफीक आदि क्षेत्रिय लोग उपस्थित रहे।
क्षेत्रीय जनता ने कोरोना महामारी पर दी अपनी अपनी राय
सरकार के आदेश का पालन कर रहे हैं काम हो नहीं रहा घर बच्चों के साथ कैरम एवं न्यूज़ देख कर टाइम काटते हैं!
मोहम्मद असलम अंसारी
निवासी गम्मू खा का हाता
कोविड-19 पॉजिटिव हो जाने से क्षेत्र में लोगों में डर का माहौल है रोडो पर सन्नाटा पसरा हुआ।
सलीम अहमद
निवासी कर्नलगंज
कोविड-19 महामारी के कारण रोजमर्रा कमाने खाने वालों पर आफत आ गई है व्यापार चौपट हो गया है रोजमर्रा मेथी की खिचड़ी का ठेला लगाकर परिवार का पालन पोषण करता हूं
मोहम्मद नबी
निवासी कर्नलगंज
मृतक अरशद को सरकार कोविड-19 पॉजिटिव बता रही है अरशद व्यापारी थे जोकि किडनी,अस्थमा,शुगर की बीमारी से ग्रस्त थे ।
मोहम्मद रईस
निवासी नीली पोश रोड
लॉक डाउन से इंसानो के साथ जानवरो को भी पेट के लाले-नही दे रहे भोजन जो गायो को है पाले
मोo नदीम सिद्दीकी……..
कानपुर/कोरोना के प्रकोप से देशवासियो को बचाने के लिये सम्पूर्ण भारत को लॉक डाउन किये जाने के कारण गरीब की रोटी के लाले तो पड़े ही है वही असहाय बेजुबान गाय व अन्य जानवरो का हाल दयनीय स्थिति में है दुकानों बाज़ारो व इंसानो के लॉक हो जाने के कारण जानवरो को भूखे प्यासे रहना पड़ रहा है भूख से बिलबिला रहे जानवरो के मरने की नौबत दिख रही है हालांकि कुछ समाज सेवियो ने गायो को चारा उपलब्ध कराया है परंतु रोज़ाना जिले की प्रत्येक गलियों में ऐसा कर पाना मुश्किल दिख रहा है
प्राप्त जानकारी के अनुसार थाना रेलबाजार के अन्तर्गत क्षेत्रो में बीस से अधिक चट्टे बने हुए है प्रत्येक चट्टा संचालक पांच से छै गाय पाले हुए है चट्टा संचालक सुबह दूध दूने के बाद गायो को दिन भर चरने के लिये हका देते है फिर शाम को पकड़कर दूध दूकर छोड़ देते है ये क्रम रोज़ाना बदस्तूर जारी रहता है इसी तरह और भी क्षेत्र में लोग गाय पाले हुए है उनका भी यही क्रम रोज़ाना जारी रहता है गायो से काम निकालने के बाद आवारा जानवरो की तरह छोड़ दिया जाता है संक्रमित वायरस के पैर पसार लेने से इंसानो के साथ जानवरो के भी पेट पर आन पड़ी है गायो को चारा मिलना बंद हो गया है पालतू गाय आवारा जानवरो में तब्दील होकर सड़क किनारे पड़ा कूड़ा खाकर पेट भरने पर मजबूर है भोजन की तलाश में दिन रात कूड़े के ढेर मे खड़ी गाय कूड़े को कुरेदती रहती है इस आशय से कुछ खाना दिख जाए।भोजन के लिये गलियों व सड़को पर भटक रही गायो को नाम मात्र ही भोजन मिल पा रहा है लॉक डाउन की वजह से कई दिनों से भूखी प्यासी खड़ी गाय आने जाने वालों को भोजन की आस में तकती रहती है चट्टा संचालको के मुह फेर लेने से दुधई गाय आवारा जानवरो में तब्दील होकर रह गई है पूछने पर चट्टा संचालक ने बताया कि पैसो की किल्लत की वजह से गायो को सही से चारा नही उपलब्ध करा पा रहे है जिसकी वजह से गाये इधर उधर भटक रही है बन्दी की वजह से चारा भी नही मिल रहा है चट्टा संचालक का गायो को भोजन की व्यवस्था न कराने का हवाला गले से उतरने योग्य नही दिख रहा।
हालांकि कुछ समाज सेवियो ने गायों की दयनीय अवस्था को देखते हुए उनके लिये भोजन की व्यवस्था की एम हेल्प लाइन टीम के संचालक शादाब इदरीसी व पुलिस विभाग में सिपाही पद पर कार्यरत सुशील यादव ने गायों के अलावा अन्य जानवरों लिए अपने स्तर पर भोजन की व्यवस्था की और संकल्प लिया कि उनसे जो बन पड़ेगा बेजुबान जानवरों के लिये भोजन की व्यवस्था कराएंगे इसके अलावा जिले के कई और समाज सेवियो ने भी गायो के लिये भोजन की व्यवस्था कराई परन्तु चिन्ता का विषय ये है कि लॉक डाउन की समय सीमा बढ़ने की वजह से गायो व अन्य जानवरों पर भूख के बादल मंडराने की संभावना है अभी तक सरकार की तरफ से गाय व आवारा जानवरो के लिये सहायता न मिलना चिंता का विषय बना हुआ है इसके अलावा कर्फ्यू जैसे माहौल में गाय की जान पर भी बनी हुई है कोई भी गौकश इन्हें हकाकर ले जाकर इनका वध कर इनके मास की बिक्री कर सकता है प्रशासन को इस ओर ध्यान देकर इनकी निगरानी करवानी चाहिये जिससे बेजुबान गायो की गौकशो से भी रक्षा की जा सके साथ ही चट्टा संचालको व गाय स्वामियों को कड़ाई से फटकार लगाई जाये जिससे गायो को भोजन की उपलब्धता के साथ जीवन की भी रक्षा हो सके।
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