वाङ्गमय पत्रिका एवं हलीम मुस्लिम पी.जी कॉलेज के संयुक्त तत्त्वाधान में आयोजित प्रवासी एवं भारतवंशी व्याख्यानमाला के अंतर्गत आज नीदरलैंड की साहित्यकार और आचार्यकुल की अध्यक्षा एवं हिंदी यूनिवर्स फॉउंडेशन की निदेशक प्रोफेसर पुष्पिता अवस्थी ने अपने विचार रखे जिसमें उन्होंने
भारतवंशी हिंदी साहित्य और हिदुस्तानी संस्कृति का विदेशों में
प्रभुत्व और वर्चस्व आज भी बना हुआ है क्योंकि भारतवंशियों ने उन देशों में वहाँ की माटी को अपने खून पसीने से सींचा है ।
आज पूरे विश्व में भारतीय संकृति का प्रभाव कॉलोनाइजर के समय से 1834 से 1916 के बीच ले जाये गए
उस समय हिंदुस्तानी के रूप में विख्यात गिरमिटिया किसान ,मजदूरों की वजह से शेष है । उनकी चार पीढ़ियों ने अपनी लगन और समर्पित निष्ठा से उन देशों की सँस्कृति के भीतर सिर्फ़ वैश्विक हो चुकी भारतीय सँस्कृति का वर्तमान भारतीय सँस्कृति के समानान्तर विकास ही नही किया अपितु विदेशी मूल के नागरिकों के भीतर अक्षय आकर्षण पैदा किया है ।
गौरतलब है कि अपना भारत देश भारतीय सँस्कृति से च्युत होने का कारण पाश्चात्य सँस्कृति को मानता है जबकि पश्चिमी देशों में रह रहे भारतवंशियों पर इसका प्रभाव नही हैं वे आज भी स्वयं को हिदुस्तानी के रूप में अपनी पहचान को मानते और जीते हैं । क्योंकि वो हिंदुस्तानी भाषा परिवार की बोलियां सगर्व बोलते हैं,उनके लिए वह वैसी ही भाषा है,जैसे किसी विदेशी की अपनी भाषा, वे आज भी विदेशियों को अविश्वास और नीची निगाह से देखते हैं और अपने हिंदुस्तानियों से कम योग्य समझते है । और यह सच भी है, अगर गत 30 वर्षों की भारत से चिकित्सा,तकनीक और कम्प्यूटर की युवा शक्ति नही पहुंचती तो उनका यह विकास नही होता । वे भारतीय मूल के किसी भी जाति धर्म को विश्वास और प्रेम से देखते हैं,हिन्दू,मुस्लिम आपस मे अपने परिवारों के युवक,युवतियों का ब्याह करते हैं । चार पीढ़ियों तक विदेशियों के बीच रहने पर भी उनकी अस्मिता आज भी भारतीय है । वे अब किसान,मजदूर नहीँ,उन देशों के शिक्षाविद,प्रशासक राजनयिक और राजनेता हैं । उनके परिवारों के प्रौढ़ लोग हिंदी के कोचिंग क्लासेज चलाते है,भारतीय संगीत,नृत्य,कुकरी,योग ध्यान,मंदिर,मस्ज़िद की सँस्कृति को जीवित और जीवंत बनाये हुए हैं । अपनी पीढ़ियों में सँस्कृति को बनाये रखने के लिए शनिवार,रविवार को पूरे परिवार सहित सुबह 8 से अपने अपने धर्म के अनुसार मंदिर मस्जिद
पहुंच जाते हैं । और सांस्कृतिक कार्यक्रम और रात के भोजन के बाद घरों को लौटते है।यह संख्या 100 से 500 के बीच रहती है । भारतवंशीयों के प्रताप से ही विश्व में भारतीयता है । उन्हीं के आयोजनों के आमंत्रण पर भारत के कलाकार,
साहित्यकार और फ़िल्म के लोग पहुंचते हैं । इस फेसबुक लाइव कार्यक्रम मे एएमयू हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर अब्दुल अलीम,अनुसंधान पत्रिका की संपादक डॉ. शगुफ्ता नियाज़,डॉ रमेश,डॉ लवलेश दत्त,विशाला शर्मा, विमलेश शर्मा,डॉ तनवीर अख्तर,डॉ ए के पांडेय, डॉ इरशाद,पंकज बाजपाई,अकरम हुसैन,मनीष गुप्ता, दीपांकर, कामिनी आदि ने देखा ।
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